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Mul Adhikar or Mul Kartavya in Hindi
मूल अधिकार का अर्थ - मूल अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्ति के लिए मौलिक तथा अनिवार्य होने के कारण संविधान द्वारा प्रदान किये जाते हैं और जिन अधिकारों में राज्य द्वारा भी हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है।
Mul Adhikar or Mul Kartavya in Hindi |
मौलिक अधिकारों का महत्व-
1.मौलिक अधिकारों को संविधान में स्थान प्रदान किया गया है।
2. इन्हें संविधान संशोधन की विशिष्ट विधि द्वारा ही परिवर्तित किया जा सकता है।
3. मौलिक अधिकारों को न्यायिक सुरक्षा भी प्राप्त होती है। इनका किसी भी प्रकार से उल्लंघन होने से नागरिक न्यायालय का संरक्षण प्राप्त कर सकते हैं।
भारत के संविधान में मौलिक अधिकार
भारत के संविधान के भाग तीन में अनुच्छेद 12 से 35 तक नागरिकों के लिए मूल अधिकारों की व्यवस्था की गयी है। 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार की सूची से हटा दिया गया है। सम्पत्ति के कानूनी अधिकार का उल्लेख अब अनु. 300क में किया गया है। अब यह केवल कानूनी अधिकार है।
वर्तमान में भारतीय नागरिकों को 6 मौलिक अधिकार प्राप्त है-
- समानता का अधिकार
- स्वतन्त्रता का अधिकार
- शोषण के विरूद्ध अधिकार
- धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार
- सांस्कृतिक एवं शिक्षा सम्बन्धी अधिकार
- सांविधानिक उपचारों का अधिकार
व्याख्या
अनुच्छेद 12- परिभाषा
अनुच्छेद 13- मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियाँ
समानता का अधिकार- अनुच्छेद 14 से 18 तक
भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को समता का अधिकार प्रदान किया गया है। इस अधिकार का उद्देश्य सामाजिक समता स्थापित करना है। इस अधिकार के अन्तर्गत संविधान में निम्न प्रावधान है-
कानून के समक्ष समानता- अनुच्छेद 14 के अनुसार राज्य किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से तथा विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।
धर्म, मूलवंश, जाति या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेद -
अनुच्छेद 15 के अनुसार राज्य नागरिकों के विरूद्ध केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा, लेकिन स्त्रियों, बच्चों, पिछड़े वर्ग के नागरिकों तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए विशेष प्रबन्ध किये जा सकते हैं।
लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता-
अनुच्छेद 16 के अन्तर्गत सभी नागरिकों को सरकारी पद पर नियुक्ति के समान अवसर प्राप्त होंगे और इस सम्बन्ध में केवल धर्म मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर सरकारी नौकरी या पद प्रदान करने में कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा। इसके कुछ अपवाद भी है जैसे, राज्य के मूल निवासियों के लिए आरक्षण, पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण इत्यादि।
व्याख्या- अनुच्छेद 16 (1) व 16 (2) राज्य के अधीन किसी पट या अन्य नियोजन में नियुक्ति के विषय में सभी भारतीय नागरिकों को समान अवसर प्रदान करता है।
अनुच्छेद 16 (3) के तहत राज्य कुछ रोजगार किसी क्षेत्र विशेष के लिए आरक्षित कर सकता है।
अनुच्छेद 16 (4) राज्य को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष उपबन्ध करने का अधिकार प्रदान करता हैं।
आरक्षण के आधार पर प्रदीप कुमार मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि आरक्षण का आधार जाति और आर्थिक दोनों संयुक्त रूप से होंगे।
अस्पृश्यता का अन्त-
अनुच्छेद 17 के अन्तर्गत कहा गया है कि अस्पृश्यता का अन्त किया जाता है। अस्पृश्यता से उपजा किसी निर्योग्यता को लागू करना अपराध होगा जो विधि के अनुसार दण्डनीय होगा।'
अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए सरकार ने 'अस्पृश्यता निवारण अधिनियम 1955' नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1976, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति निरोधक कानून, 1989 पारित किया है।
उपाधियों का अन्त-
अनुच्छेद 18 द्वारा उपाधियों का अन्त किया गया है।
अनुच्छेद 18 (1) में स्पष्ट कहा गया है कि सेना तथा विद्या सम्बन्धी उपाधियों के अतिरिक्त राज्य अन्य कोई उपाधियाँ प्रदान नहीं करेगा।
अनुच्छेद 18 (2) के अनुसार भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा।
अनुच्छेद 18 के उपबन्धों का उल्लंघन करने वालों के लिए संविधान मैं किसी दण्ड का प्रावधान नहीं है। यह अनुच्छेद केवल निदेशात्मक है, आदेशात्मक नहीं, परन्तु संसद को विधि बनाकर दण्ड सम्बन्धि प्रावधान करने की पूरी शक्ति है, लेकिन संसद ने अभी तक ऐसी कोई विधि नहीं बनायी है।
स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22 तक )
भारत के मूल संविधान में 7 प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की गयी थी लेकिन 44वें संविधान संशोधन द्वारा सम्पत्ति सम्बन्धी स्वतंत्रता के अधिकार को समाप्त कर दिया गया है। वर्तमान में संविधान द्वारा नागरिकों को निम्नलिखित स्वतंत्रताएँ प्रदान की गयी है-
विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता- अनुच्छेद 19 (1) (क) के अनुसार भारत के सभी नागरिकों को विचार व्यक्त करने तथा भाषण देने का अधिकार है। प्रेस की स्वतंत्रता भी इसमें सम्मिलित है।
अनु. 19 (2) इस स्वतंत्रता पर भारत की प्रभुता व अखण्डता के पक्ष में राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्य के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों के हित में, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हित में न्यायालय अवमानना, मानहानि आदि के सम्बन्ध में युक्तियुक्त निबर्धन लगाए जा सकते हैं।
व्याख्या- 44वें संविधान संशोधन द्वारा एक नया अनुच्छेद 361 (A) जोड दिया गया जिसके अन्तर्गत समाचार पत्रों को संसद एवं विधानमंडलों की कार्यवाही को प्रकाशित करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की गयी।
(ii) शान्तिपूर्ण और निरायुद्ध सम्मेलन की स्वतंत्रता - अनुच्छेद 19 (1) (ख) के अन्तर्गत सभी नागरिकों को शान्तिपूर्ण और (i) बिना किन्ही शस्त्रों के सभा या सम्मेलन करने का अधिकार दिया गया है।
परन्तु उपरोक्त स्वतंत्रता पर भी अनुच्छेद 19 (3) के तहत युक्तियुक्त प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।
(ii) संगम व परिसंघ बनाने की स्वतंत्रता- अनुच्छेद 19 (1)(ग) के अनुसार सभी नागरिकों को समुदाय या संघ के निर्माण की स्वतंत्रता प्रदान की गयी है।
'अनुच्छेद 19 (4) के तहत उपरोक्त स्वतंत्रता पर भी युक्तियुक्त प्रतिबन्ध लोक व्यवस्था, सदाचार देश की सम्प्रभुता आदि के आधार पर लगाया जा सकता है।
(iv) भारत के राज्य क्षेत्र में अबाध भ्रमण की स्वतंत्रता- अनुच्छेद 19(1) (घ) के अनुसार भारत के सभी नागरिकों को अपनी इच्छानुसार स्थाई या अस्थाई रूप से निवास या भारत के किसी भी स्थान पर अबाध भ्रमण की स्वतंत्रता प्राप्त है।
अबाध भ्रमण की स्वतंत्रता पर अनुच्छेद 19 (5) के तहत साधारण जनता के हित एवं किसी अनुसूचित जनजाति के हित के संरक्षण के आधार पर उचित प्रतिबन्ध लगाए जा सकते हैं।
भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भी भाग में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता- अनुच्छेद 19 (1) (ङ) के द्वारा नागरिकों को भारत के राज्य क्षेत्र के किसी भाग में निवास करने या बस जाने की स्वतंत्रता प्रदान की गयी है।
उपरोक्त स्वतंत्रता पर भी अनुच्छेद 19 (5) के तहत युक्तिसंगत कारणों से प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।
वृत्ति, उपजीविका या कारोबार की स्वतंत्रता- अनुच्छेद 19 (1) (छ) के द्वारा सभी नागरिकों को वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार की स्वतंत्रता प्रदान की गयी है। परन्तु अनुच्छेद 19 (6) के तहत युक्तिसंगत कारणों से राज्य द्वारा प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।
मूल संविधान में संपत्ति के अर्जन, धारण एवं व्ययन की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19 (1) (च) को 44 वें संविधान संशोधन द्वारा समाप्त किया गया है।
व्याख्या- उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 19 में निम्न को भी शामिल किया है
1. सूचना का अधिकार
2.प्रेस की स्वतंत्रता
3.शान्ति का अधिकार
4. फोन टेपिंग के विरूद्ध अधिकार
5. अपने या किसी ओर के विचारों को प्रसारित करने का अधिकार
6. व्यावसायिक विज्ञापन प्रसारित करने का अधिकार प्रदर्शन व विरोध का अधिकार
7. हड़ताल के सिवाय
8. किसी संगठन द्वारा आयोजित बन्द के विरूद्ध अधिकार
9. किसी समाचार पत्र पर पूर्ण प्रतिबन्ध के खिलाफ अधिकार
व्यक्तिगत स्वतंत्रताएँ- इस स्वतंत्रता के अन्तर्गत अनुच्छेद 20, 21, 22 द्वारा प्रत्याभूत मौलिक स्वतंत्रताओं की गणना की जाती है-
(i) अपराधों के लिए दोष सिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण-
अनुच्छेद 20 में अपराधों के लिए दोष सिद्धि के सम्बन्ध में सुरक्षा प्रदान की गयी है। किसी भी व्यक्ति को तभी दण्डित किया जा सकता है, जब-
1. विद्यमान कानून का उल्लंघन करता हो।
2. किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक दण्ड नहीं दिया जा सकता।
3. व्यक्ति को अपने विरूद्ध साक्ष्य देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
(ii) प्राण व दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण-
अनुच्छेद 21 के अनुसार किसी व्यक्ति को उसके प्राण (जीवन) या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जायेगा, अन्य किसी प्रकार से नहीं।
44वें संविधान संशोधन 1978 द्वारा इस अधिकार को और अधिक सुरक्षित बना दिया गया है। अब आपातकाल में भी जीवन और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार को सीमित या समाप्त नहीं किया जा सकता।
(iii) कुछ दशाओं में गिरफ्तारी व निरोध से संरक्षण-
अनुच्छेद 22 के अनुसार व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार से जीवन तथा स्वाधीनता से वंचित नहीं किया जा सकता।
इसमें निम्न बिन्दुओं:पर ध्यान दिया जाता है
1. बन्दी बनाए गए व्यक्ति को उसके बन्दी बनाए जाने के कारणों को जानने का अधिकार [अनुच्छेद 22 ( 1)
2. बन्दी बनाए गए व्यक्ति को वकील से परामर्श करने का अधिकार है।
3. किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के 24 घण्टे के अंदर उसे दण्डाधिकारी के सम्मुख प्रस्तुत किया जायेगा।
(गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक के यात्रा समय को छोड़कर)
यह अधिकार भारत में निवास करने वाले विदेशी शत्रु या निवारक निरोध अधिनियम के अन्तर्गत गिरफ्तार व्यक्तियों पर लागू नहीं होगा।
निवारक निरोध-
निवारक निरोध से तात्पर्य बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया के नजरबन्दी से है।
यह अपराध के लिए दण्डित करने की नहीं अपितु अपराध करने से रोकने की प्रक्रिया है।
यह सामान्य व संकट काल दोनों में लागू हो सकती है।
3. शोषण के विरूद्ध अधिकार |
(i) बेगार या अन्य बलात् श्रम का निषेध- संविधान के अनुच्छेद 23 द्वारा बेगार तथा अन्य बलात् श्रम का निषेध किया गया है।
राज्य के हित में व्यक्ति को आवश्यक सेवा देने के लिए बाध्य किया जा सकता है, ऐसा करते समय राज्य धर्म या जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।
(ii) बाल श्रम का निषेध- अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कारखानों अथवा अन्य खतरनाक स्थलों पर काम पर नहीं लगाया जा सकता है।
4. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार
संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता, अन्तः करण की स्वतंत्रता, किसी धर्म को स्वीकार करने, उसका पालन करने व प्रसार करने की स्वतंत्रता प्रदान की गयी है।
अनुच्छेद-25- अन्त:करण की और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार की स्वतंत्रता।
अनुच्छेद-26- धार्मिक कार्यों के प्रबन्ध की स्वतंत्रता।
अनुच्छेद-27- किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रता
अनुच्छेद-28- कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता ।
5. संस्कृति व शिक्षा सम्बन्धी अधिकार
संविधान द्वारा भारत के सभी नागरिकों को संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार प्रदान किया गया है
(i) अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण- अनुच्छेद-29 के अनुसार भारत के सभी नागरिकों व प्रत्येक वर्ग को अपनी विशेष भाषा, लिपि, संस्कृति बनाये रखने की स्वतंत्रता है। राज्य द्वारा संचालित या वित्त पोषित संस्थाओं में प्रवेश के लिए जातिगत आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।
(ii) अल्पसंख्यक वर्ग को शिक्षा संस्थाओं की स्थापना व प्रशासन का अधिकार- अनुच्छेद 30 के अनुसार अल्पसंख्यक वर्ग को अपनी इच्छानुसार शिक्षण संस्था की स्थापना तथा उसके प्रशासन
का अधिकार है।
6. साविधानिक उपचारों का अधिकार
अनुच्छेद 32 द्वारा प्रदत्त साविधानिक उपचारों के अधिकार को डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने संविधान का हृदय व आत्मा कहा।
*यह अधिकार सभी नागरिकों को यह छूट देता है कि वह अपने अधिकारों के संरक्षण के लिए सर्वोच्च न्यायालय के पास जा सकते हैं तथा अपने अधिकारों को लागू करने की मांग कर सकते हैं।
न्यायाधीश पतंजलि शास्त्री ने कहा है कि उच्चतम न्यायालय मौलिक अधिकारों के संरक्षण के पवित्र कार्य का पालन करने वाले सजग प्रहरी के समान है। संविधान में न्यायालय द्वारा पाँच प्रकार के लेख जारी करने की व्यवस्था की गई है।
1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण लेख
2. परमादेश
3. प्रतिषेध
4. उत्प्रेषण
5. अधिकार-पृच्छा
*संपत्ति का कानूनी अधिकार- संविधान के 44वें संशोधन (1978) द्वारा सम्पत्ति का अधिकार मूल अधिकार नहीं रहा है। अब यह मौलिक अधिकार नहीं कानूनी अधिकार है।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम- अनुच्छेद 21 (A) के अन्तर्गत नि:शुल्क प्राथमिक शिक्षा के अधिकार को क्रियान्वित करने हेतु अगस्त 2009 शिक्षा का अधिकार अधिनियम पारित किया गया है। जिसमें 7 अध्याय (भाग) व एक अनुसूची है।
*प्रथम भाग-1 से 8वीं तक की शिक्षा को प्राथमिक शिक्षा घोषित किया गया है।
*द्वितीय भाग- नि:शुल्क प्राथमिक शिक्षा की चर्चा की गयी
*तृतीय भाग- इसमें माता-पिता व स्थानीय अधिकारी के कर्तव्यों की चर्चा की गयी है।
* चतुर्थ भाग- इसमें अध्यापकों हेतु उत्तरदायित्व व कर्तव्यों की व्यवस्था की गयी है तथा कमजोर वर्ग के बच्चों हेतु 25% आरक्षण की व्यवस्था की गयी है।
षष्ठ भग- बाल अधिकारों का संरक्षण
सातवाँ भाग- विविध प्रावधान
यह अधिनियम 1 अप्रैल 2012 से लागू हुआ।
अनुच्छेद 21 से सम्बद्ध प्रमुख निर्णय
गोपालन बनाम मद्रास राज्य (1950) वाद में न्यायालय द्वारा प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता का तात्पर्य शारीरिक स्वतंत्रता से बताया गया था।
मेनका गाँधी बनाम भारत संघ (1978) में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि प्राण का तात्पर्य मानवीय गरिमा के साथ जीवन यापन करने का अधिकार है।
दैहिक स्वतंत्रता में अनेक अधिकार (जो अनुच्छेद 19 में शामिल नहीं है।) सम्मिलित है। > यह अधिकार कार्यपालिका व विधायिका से संरक्षण प्रदान करता है।
इस निर्णय में न्यायालय ने 'विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के स्थान पर विधि द्वारा उचित प्रक्रिया को अपनाया। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने नींद के अधिकार को जीवन जीने के लिए आवश्यक अधिकार माना।
संसद बनाम मौलिक अधिकार
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 1967 में गोलकनाथ वाद में निर्णय दिया गया है कि संसद को संविधान के भाग III में कोई संशोधन करने का अधिकार नहीं है और न ही मौलिक अधिकारों को छीनने अथवा सीमित करने का अधिकार है।
*संसद को संविधान के किसी भी भाग में संशोधन करने के उद्देश्य से 1971 में 24 वॉ संशोधन किया गया इस संशोधन को न्यायालय में चुनौती दी गयी, परन्तु सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानन्द भारती मामले में यह अनौपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया कि संसद संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है। परन्तु संविधन के मूल ढाँचे को नष्ट नहीं कर सकती।
1976 में पारित 42वें संशोधन में एक बार फिर निश्चयपूर्वक यह कहा कि संसद को संविधान में संशोधन करने की असीमित शक्ति प्राप्त है। परन्तु 1980 में मिनर्वा मिल विवाद में उच्चतम न्यायालय ने 42वें संशोधन के प्रावधानों को समाप्त कर दिया जिनके द्वारा संसद को संविधान में संशोधन करने की असीमित शक्ति प्रदान की गयी थी।
वर्तमान में संसद को संविधान के किसी भी भाग में जिसमें मौलिक अधिकारों से सम्बन्धित भाग III भी सम्मिलित है संशोधन करने का अधिकार है। ऐसा करते समय संसद को ध्यान में रखना होगा कि संविधान का मूल ढाँचा प्रभावित न हो।
मूल कर्त्तव्य
अधिकार एवं कर्त्तव्य एक-दूसरे के पूरक हैं। एक व्यक्ति के कर्तव्य दूसरे के अधिकार बन जाते हैं।
भारतीय संविधान में अधिकार तो मूल रूप से ही विद्यमान है, लेकिन नागरिकों के मूल कर्तव्यों को स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर 42वें संविधान अधिनियम द्वारा संविधान के भाग IV (A) तथा अनुच्छेद 51 (A) में जोड़ा गया है।
भारतीय संविधान में मूल कर्त्तव्यों की प्रेरणा पूर्व सोवियत संघ (रूस) के संविधान से ली गयी है।
42वें संविधान संशोधन द्वारा 10 मौलिक कर्त्तव्यों का समावेश किया गया था।
ग्यारहवाँ मौलिक कर्तव्य 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा अनुच्छेद 51 (A) में जोड़ा गया है।
अनुच्छेद 51 (A) के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य होगा कि वह-
- संविधान का पालन करे तथा उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज तथा राष्ट्रगान का आदर करें।
- स्वतन्त्रता के लिये हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखे व उनका पालन करे।
- भारत की प्रभुता, एकता व अखण्डता को अक्षुण्ण रखे।
- देश की रक्षा करे और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करे।
- भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा, प्रदेश या वर्ग पर आधारित भेदभाव से परे, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के समान के विरूद्ध हो।
- हमारी समन्वित संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे।
- प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी व वन्यजीव है, रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखे।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।।
- सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्र में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे। जिससे राष्ट्र निरन्तर बढ़ते हुए प्रगति व उत्कर्ष की नई ऊँचाइयों को छू ले।
- अभिभावकों का यह कर्त्तव्य होगा कि वे अपने 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के अवसर दे।
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