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Zila Prashasan Rajasthan in Hindi - जिला प्रशासन
किसी भी राज्य के प्रशासन को आसानी व सुगमता से चलाने के लिए राज्यों को संभागों व संभागों को जिलों में विभक्त किया गया है। जिला प्रशासन राज्य प्रशासन की महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक संरचना है जो राज्य के सचिवालय तथा तहसीलों के मध्य समन्वयक कड़ी की भूमिका निभाता है। जिला प्रशासन जिले में सरकार के समस्त कार्य करता है इसी कारण किसी भी राज्य की 'सुरक्षा' एवं ' विकास' जिला प्रशासन की परिधि में आते हैं। देश में सर्वप्रथम आधुनिक जिला प्रशासन का रूप हमें 'मौर्यकाल' में देखने को मिलता है, उस समय जिला प्रशासन के प्रमुख को 'राजुका' के नाम से पुकारा जाता था जिसकी स्थिति वर्तमान जिला कलेक्टर के समान ही थी।
Zila Prashasan Rajasthan in Hindi
चाणक्य ने अपनी पुस्तक 'अर्थशास्त्र' में जिले को 'अहारा' व जिले के अधिकारी को 'स्थानिक' कहा है, तो गुप्तकाल व हर्ष के समय जिले को 'विषय' व जिला कलेक्टर को 'विषयपति', मुगलकाल में जिले को 'सरकार' व उसके मुखिया को अमिल या 'अमाल गुजार' के नाम से जाना जाता था। सन् 1772 में भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन काल में गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने बंगाल में कलेक्टर पद सृजित किया इसी के साथ देश में आधुनिक जिला प्रशासन का एक नया अध्याय प्रारम्भ हुआ। सन् 1773 में इस पद को समाप्त कर दिया गया लेकिन 1781 में पुन: यह पद सृजित किया गया। ब्रिटिश शासनकाल में डिस्ट्रिक्ट शब्द का प्रथम प्रयोग ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा सन् 1776 में कलकत्ता जिले के दीवान के लिए किया गया था 1793 में लॉर्ड कॉर्नवालिस ने कलेक्टर की राजस्व व न्यायिक शक्ति को पृथक कर उसकी स्थिति को निम्न बना दिया।
ध्यात्वय रहे-देश का प्रथम कलेक्टर 'रॉल्फ शैल्डन' था।
भारत के संविधान में 'जिला' शब्द अनु. 233 में जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति के क्रम में प्रयोग किया है। अनु. 243 में पंचायतीराज के लिए 'जिला परिषद्' हेतु और छठी अनुसूची में कुछ राज्यों में स्वशासी जिलों हेतु प्रयोग किया है।
जिला कलेक्टर
भारतीय नौकरशाही में जिला कलेक्टर अत्यंत महत्वपूर्ण पद है। ब्रिटिश शासन के दौरान कलेक्टर का पद राजस्व संग्रह के लिए सृजित किया गया, जिसे बाद में शान्ति और न्याय व्यवस्था से संबंधित कार्य भी दे दिये गए, परन्तु वर्तमान में जिला कलेक्टर के कार्य मूलत: विकास प्रशासन से जुड़े हैं। जिला कलेक्टर को ही 'जिलाधीश' (जिलाधीश जनपद प्रशासन का प्रधान होता है) जिला अधिकारी, जिला दण्डनायक (DM) एवं 'उप-आयुक्त' के नाम से भी जाना जाता है। यह जिले का सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी होता है। बिहार, कर्नाटक, असम, पंजाब, जम्मू-कश्मीर तथा हरियाणा में जिला कलेक्टर को उपायुक्त अर्थात् Deputy Commissioner / DC भी कहते हैं।
ध्यात्वय रहे-यह जिले में न केवल राज्य सरकार का बल्कि केन्द्र सरकार का भी प्रमुख पदाधिकारी होता है। -
जिला कलेक्टर की नियुक्ति संघ लोक सेवा आयोग के द्वारा प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से की जाती है।
ध्यात्वय रहे-इस पद पर अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं (IAS) में चयनित प्रशासनिक अधिकारी की नियुक्ति की जाती है।
ये राज्यों में केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं तथ सभी राज्यों में इन्हें एक समान वेतन एवं सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।
ध्यात्वय रहे-इन्हें वेतन राज्य सरकार के द्वारा दिया जाता है।
राज्य सरकार इन्हें अपने राज्य में विभिन्न पदों पर नियुक्त करती है तथा इनका स्थानान्तरण करती हैं। जिला कलेक्टर राज्य सरकार व जनता के मध्य कड़ी का काम करता है अतः इसे जिले में राज्य सरकार के हाथ, कान एवं आँख कहा जाता है।
ध्यात्वय रहे-भारत में सर्वप्रथम 1773 ई. के रेग्यूलेटिंग एक्ट के अन्तर्गत दीवान को प्रशासनिक अधिकार देते हुए उसे जिले का सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी बनाया गया था।
जिला कलेक्टर के कार्य एवं शक्तियाँ
जिले के प्रमुख के रूप में विकास अधिकारी के रूप में सभी विकास कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन की जिम्मेदारी जिलाधीश की होती है। यह तहसीलदार, नायब तहसीलदार की नियुक्तियाँ, उनके स्थानान्तरण एवं उनके अवकाश संबंधित कार्या का निर्धारण | करता है। कलेक्ट्रेट में चतुर्थ श्रेणी, अधिकारियों, तहसील स्टाफ के कर्मचारियों की नियुक्तियों करता है और पेंशन प्रकरण को जाँच करता है तथा अधीनस्थ अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान करता है।
वित्तीय अधिकारी के रूप में
विभिन्न पंचायत समितियों के द्वारा प्रस्तुत किये गये वार्षिक बजट की जाँच करता है। तहसील स्ता पर विभिन्न कोषाधिकारियों, मुद्रांक अधिकारियों के कार्यों का निरीक्षण करता है।
प्रशासनिक कार्य
- क्षेत्रीय समितियों में जिले के प्रमुख के रूप में भाग लेता है।
- अकाल या फसल नष्ट होने की स्थिति में आवश्यक राहत कार्य प्रदान करता है।
- विभिन्न प्रशासनिक अधिकारियों के कार्य में आवश्यक समन्वय स्थापित करता है।
- आबकारी दुकानों के लिए उचित दिशा-निर्देश जारी करता है।
- अपने प्रशासनिक अधिकारियों के विरुद्ध जो जन- शिकायतें प्राप्त होती हैं उनका निपटारा करता है।
- होम्योपैथिक डॉक्टरों की सेवाओं का आवश्यक पंजीकरण करता है।
- अनुमोदित शैक्षणिक संस्थानों को दिये जाने वाले धन का प्रबन्धन करता है।
ध्यात्वय रहें :- जिला कलेक्टर वह धुरी है जिसके चारों ओर जिला प्रशासन घूमता है। उसकी कई प्रशासनिक भूमिकाएं होती है।
कर संग्रहक के रूप में
इसके द्वारा राजस्व संग्रहण वसूली के कार्य के लिए समय मय पर आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किये जाते हैं। भूमि भिलेखों से सम्बन्धित कार्यों का निरीक्षण किया जाता है। कृषि यकर के आंकलन का कार्य किया जाता है। जमींदारी उन्मूलन - दौरान हुई क्षति-पूर्ति के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करता है।
जिला मजिस्ट्रेट के रूप में
जिले में शान्ति व्यवस्था बनाये रखने से सम्बन्धित अधिकरियों आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करता है। विभिन्न सार्वजनिक कार्यक्रमों, भाओं के दौरान आवश्यक दण्डाधिकारियों की नियुक्ति का आदेश । का है साथ ही जिले में स्थित विभिन्न पुलिस चौकियों/थानों का वर्ष एक बार निरीक्षण करता है।
निर्वाचन अधिकारी के रूप में
संसदीय एवं विधानसभा चुनावों में निर्वाचन अधिकारी के रूप में यह कार्य करता है तथा निर्वाचन प्रक्रिया पर आवश्यक नियंत्रण करता है। जिला स्तर पर मुख्य चुनाव अधिकारी के रूप में जिलाधीश रिटर्निंग ऑफिसर कहलाता है।
अन्य कार्य
इसे ग्रामीण विकास अभिकरण का पदेन अध्यक्ष माना गया है, जो कार्य किसी को नहीं सौंपे गये हैं वे कार्य इसी के द्वारा सम्पादित किये जाते हैं। जिले के विभिन्न औद्योगिक केन्द्रों का मुखिया तथा जिला स्तरीय समन्वय समिति का सभापति होता है। जनगणना के समय विभिन्न अधिकारियों को आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करता है। जिले में विशिष्ट अतिथियों के आगमन के दौरान उसका अतिथि सत्कार करता है तथा आवश्यक व्यवस्था बनाये रखता है।
ध्यात्वय रहे-यह लगभग 12-18 घण्टे तक इन कार्यों में अपना समय व्यतीत करता है। जिला दण्ड नायक के रूप में जिला कलेक्टर की शक्तियाँ है-कानून व व्यवस्था बनाये रखना पुलिस पर नियंत्रण रखना तथा विदेशियों के परिपत्रों की जाँच करना।
उपखण्ड अधिकारी S.D.0.
जिले का राजस्व एकत्रित करने की दृष्टि से जिलों को जिन इकाईयों (सामान्यत: 1-2 तहसीलों को मिलाकर) में बाँटा गया हैं उन्हें उपखण्ड कहा जाता है। महाराष्ट्र में राजस्व उपखण्ड को प्रान्त' कहा जाता है। उपखंड अधिकारी तहसीलदार से पदोन्नत होकर अथवा आर.पी.एस.सी. द्वारा राजस्थान प्रशासनिक सेवाओं से चयनित किये जाते हैं ।
ध्यात्वय रहे-राजस्थान में उपखण्डों की संख्या 295 है। राज्य में सर्वाधिक उपखण्ड भीलवाड़ा ( 16) में हैं तो सबसे कम जैसलमेर (4) में हैं।
यह राजस्व संबंधी कार्य करता है, तो S.D.O. कहलाता है तथा जब वह प्रशासनिक व न्यायिक कार्यों का सम्पादन करता है तो वह S.D.M कहलाता है।
इस उपखण्ड का सर्वोच्च अधिकारी 'उपखण्ड अधिकारी" कहलाता है जिसे जिला कलेक्टर की आँख एवं कान तथा उप जिला कलेक्टर, परगना अधिकारी के रूप में भी जाना जाता है।
ध्यात्वय रहे-उपखण्ड अधिकारी राज्य प्रशासनिक सेवा (RAS)| का अधिकारी होता है।
उपखण्ड अधिकारी जिले में कलेक्टर एवं तहसीलदार के मध्य मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है एवं उपखण्ड में राजस्व प्रशासन को सफलतापूर्वक संचालित करने में अपनी भूमिका निभाता है।
उपखण्ड अधिकारी के कार्य
S.D.M. के रूप में कार्य-उपखण्ड अधिकारी उपखण्ड स्तर । पर वही कार्य इस रूप में करता है जो कलेक्टर द्वारा जिला स्तर पर किये जाते हैं अर्थात् जिले में जिला कलेक्टर को जो दण्डनायक शक्तियाँ प्राप्त है वहीं उपखण्ड स्तर पर इसे प्राप्त है।
यह शान्ति व्यवस्था स्थापित करने, जेल तथा पुलिस थानों का निरीक्षण करने, फौजदारी प्रकरणों की जाँच करने एवं धारा 144 को लगाने से सम्बन्धित कार्य उपखण्ड स्तर पर करता है।
ध्यात्वय रहे-इस रूप में इसके द्वारा किये जाने वाले कार्य पुलिस प्रशासन के सहयोग पर निर्भर करते हैं।
न्यायिक अधिकारी के रूप में-भूमि सम्बन्धित विवादों, चरागाह भूमि विवाद, भू-अभिलेख, पंजीकरण विवाद, नामान्तरण से सम्बन्धित विवाद, सम्पत्तियों के विभाजन एवं भूमि मुआवजे से सम्बन्धित विवाद, लगान-मुक्त भूमि की जाँच आदि से संबंधित अर्द्ध - न्यायिक शक्तियाँ प्राप्त होती है।
भू-अभिलेख से सम्बन्धित या राजस्व अधिकारी के रूप में
1ग्राम वाइज नक्शे एवं भू-अभिलेख तैयार करवाना।
2पटवारी/कानूनगो/गिरदावर/भू-अभि लेख निरीक्षक के कार्यों निरीक्षण करना एवं उनके कार्यालयों का निरीक्षण करना।
3भू-राजस्व संग्रहण की प्रक्रिया को दुरस्त बनाना।
4उपखण्ड क्षेत्र की रिपोर्ट जिला कलेक्टर को देना।
5: फसल की स्थिति का आंकलन करना एवं उसकी रिपोर्ट तैयार करवाना
प्रशासनिक अधिकारी के रूप में कार्य
1़उपखण्ड क्षेत्र के समस्त अधीनस्थ लोक सेवाओं के अधिकारियों पर नियन्त्रण रखना एवं पर्यवेक्षण का कार्य करना।
2़राजस्व अभियानों के अन्तर्गत जन शिकायतों का निपटारा करना।
3़गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वाले लोगों से सम्बन्धित कार्यक्रमों के सन्दर्भ में आवश्यक जानकारी प्राप्त करना।
4़उचित मूल्यों की दुकानों पर नियन्त्रण रखना तथा दोषी व्यक्तियों के विरुद्ध कार्यवाही का आदेश जारी करना। 5़सरकारी भूमि पर अतिक्रमण रोकना
तहसीलदार
जिला प्रशासन को व्यवस्थित ढंग से संचालित करने व उपखण्ड स्तर के नीचे राजस्व प्रशासन के लिए उसे तहसीलों में विभाजित किया गया है। राज्य में वर्तमान में कुल 331 तहसीलें हैं। राज्य में सर्वाधिक तहसीलें जयपुर (17) में हैं तो सबसे कम तहसीलें जैसलमेर (4) में हैं।
ध्यात्वय रहे-विभिन्न राज्यों में तहसील को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे-तमिलनाडु में 'तालुक' कहा जाता है, जबकि महाराष्ट्र में 'तालुका' कहा जाता है।
वस्तुत: तहसील शब्द अरबी भाषा का शब्द है, जो सरकार मालगुजारी वसूल करने से संबंधित इकाई है। तहसील शब्द मुगलों के शासनकाल में लोकप्रिय था। तहसील का सर्वोच्च राजस्व प्रशासन अधिकारी तहसीलदार होता है जो उपकोषालय का प्रमुख भी है।
ध्यात्वय रहे-दो तिहाई पद राज्य लोक सेवा आयोग (RPSC) के द्वारा प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से जबकि शेष पद नायब तहसीलदार एवं राजस्व निरीक्षकों में से चयनित किये जाते हैं।
राजस्व मण्डल ( मुख्यालय-अजमेर) इनकी नियुक्ति प्रक्रिया में परामर्शदाता के रूप में कार्य करता है। इन सेवाओं को राजस्थान प्रशासन की अधीनस्थ सेवाएँ माना गया है।
टोंक में स्थित 'सर्वउद्देश्यीय भू-राजस्व प्रशिक्षक विद्यालय" में तहसीलदारों को 18 माह तक प्रशिक्षण दिया जाता है जिसमें इन्हें दीवानी, फौजदारी, भारतीय दण्ड संहिता एवं काश्तकारी विषयों के बारे में ज्ञान प्रदान किया जाता है।
तहसीलदार के प्रमुख कार्य
दण्डनायक के रूप में-उपखण्ड अधिकारी जहाँ प्रथम श्रेणी का कार्यपालक दण्डनायक अधिकारी होता है वहीं तहसीलदार द्वितीय श्रेणी का कार्यपालक दण्डनायक अधिकारी होता है।
न्यायिक अधिकारी के रूप में राजस्थान काश्तकारी अधिनियम की धारा 88 के अन्तर्गत चारागाह भूमि से सम्बन्धित, कृषि भूमि से सम्बन्धित विवादों एवं लगान, नामांतरण, चारागाह, वन से मुक्त भूमि की जाँच के मामलों में न्यायिक अधिकारी के रूप में कार्य करता है।
भू-राजस्व अधिकारी के रूप में-प्रत्येक गाँव की भूमि का नक्शा, उसके सर्वेकार्य एवं इससे सम्बन्धित आवश्यक अभिलेखों को तैयार करवाना। पटवारी, कानूनगो, भू-निरीक्षक अधिकारी के कार्यों । का निरीक्षण करना तथा इनके माध्यम से राजस्व प्रशासन में समन्वय स्थापित करना।
प्रशासनिक अधिकारी के रूप में-चुनावों के समय यह चुनावी प्रक्रिया कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोग करता है । तहसील स्तर के प्रशासनिक कार्यों का मुखिया होता है तथा तहसील क्षेत्र में निर्वाचन नामावलियों को तैयार करवाता है। राशन-कार्ड की दुकानों में उपलब्ध कराई जाने वाली वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करता है।
सरकार की विभिन्न योजनाओं के संचालन एवं पर्यवेक्षण सहायता करता है तथा प्राकृतिक आपदा के समय राहत कार्यों को संचालित करता है, जो भूमि नीलाम की जाती है उसके सन्दर्भ में आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करता है। आवश्यक प्रमाण-पत्रों (मूल निवास, चरित्र प्रमाण पत्र) को जारी करता है। प्रमुख व्यक्तियों के आगमन के समय उनका मार्गदर्शन करता है।
ध्यात्वय रहे-20 पटवार सर्किल पर एक उप-तहसील बनाई जाती है जिसका सर्वोच्च अधिकारी 'नायब तहसीलदार' होता है जो तहसीलदार के निर्देशन में कार्य करते हुए तहसीलदार की सहायता करता है।
कानूनगो गिरदावर
भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 32 व 33 के तहत् इसका उल्लेख किया गया है तथा राज्य सरकार द्वारा बनाये गये नियमों के अनुसार इनकी नियुक्तियाँ तहसील मुख्यालय पर की जाती है। यह तहसीलदार के निर्देशन में ही अपने समस्त कार्यों को सम्पादित करता है। सामान्यत: 7-8 पटवार क्षेत्रों पर एक कानूनगो या गिरदावर की नियुक्ति की जाती है।
कानूनगो गिरदावर के कार्य
सदर कानूनगो का मुख्य कार्य कानूनगो पर देखरेख एवं नियंत्रण, लैण्ड रिकार्ड फार्मों का वितरण करना और पटवार स्कूलों का देखरेख करना। अपने क्षेत्र के समस्त पटवारियों पर अपना नियन्त्रण रखना उनका मार्गदर्शन करना एवं वर्ष में एक या अधिक बार पटवार क्षेत्रों का निरीक्षण करना। पटवार क्षेत्र की सीमा का निर्धारण गिरदावर के द्वारा ही किया जाता है तथा इनकी संख्या का निर्धारण भी इसी के द्वारा किया जाता है। यह तहसीलदार तथा पटवारी के मध्य मध्यस्थ (कड़ी) के रूप में कार्य करता है।
पटवारी द्वारा जो कार्य किये जाते हैं उनकी सर्वप्रथम सूचना इसी को दी जाती है। कलेक्टर अथवा तहसीलदार द्वारा बुलायी गई बैठक में अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है तथा आवश्यक जानकारियाँ उपलब्ध करवाता है। विभिन्न पटवार क्षेत्रों में समन्वय स्थापित करता है।
गिरदावरी-
पटवारी प्रत्येक खेत में बोई गई फसल का स्वयं देखकर निरीक्षण करता है तथा खसरा (रजिस्टर) में अंकित करता है. जिसे गिरदावरी कहा जाता है।
खसरा-
गाँव के नक्शे में प्रत्येक खेत का एक क्रमांक अंकित होता है, जिसे खसरा कहा जाता है।
जमाबंदी-
किसी के स्वामित्व की समस्त कृषि भूमि का विवरण एक रजिस्टर में एक जगह पर खाते के रूप में लिखा जाता है, जिसे जमाबंदी कहा जाता है, जिसका प्रत्येक चार वर्ष बाद नवीनीकरण किया जाता है।
लगान-किसान से कृषि भूमि के उपयोग के बदले सरकार उससे एक निर्धारित राशि वसूल करती है, जिसे लगान कहा जाता है।
पटवारी
पटवारी पदनाम संभवतः मुस्लिम शासकों की देन है। ब्रिटिश शासन के शुरूआत तक यह पद सरकार से स्वतंत्र था। 1873 राजस्व कानून के अधीन ही इस पद को सरकारी माना गया।
भू-राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 30 एवं 31 के तह पटवारी के पद का प्रावधान किया गया है। जिले की भू राजस् व्यवस्था का सबसे छोटा अधिकारी होता है किन्तु सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, जिसकी नियुक्ति व चयन राजस्व मण्डल करता है। राजस्थान राजस्व मण्डल का मुख्यालय अजमेर ( 1 नवंबर, 1949 व स्थापित ) है तथा पटवारी के प्रशिक्षण केंद्र भरतपुर, टोंक, भीलवाडा़ और श्रीगंगानगर में स्थित हैं।
Trick : BB श्रीजी टोंक गये।
भरतपुर भीलवाड़ा श्रीगंगानगर टोंक
ध्यात्वय रहे-पटवार का पद मुगल काल से चला आ रहा है।
Very Most.-राजस्थान में राजस्व न्यायालय का मुख्यालय अजमेर' में है।
एक तहसील में 20-30 पटवार क्षेत्र होते हैं जबकि एक पटवार क्षेत्र ग्राम पंचायत स्तर पर गठित किया जाता है। राजस्थान में 1083 पटवार मण्डल है। इनके कर्तव्यों एवं इनकी सेवा शर्तों का निर्धारण राज्य सरकार के द्वारा किया जाता है।
ध्यात्वय रहे-विभिन्न राज्यों में पटवारी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे-तमिलनाडु में 'कारनाम', उत्तर प्रदेश में 'लेखपाल' तथा महाराष्ट्र में 'तलैटी' कहा जाता है।
पटवारी के प्रमुख कार्य
खरीफ और रबी की फसल की गिरदावरी के दौरान स्थल निरीक्षण करना एवं सत्यापित कर रिपोर्ट करने का दायित्व पटवारी का है। अपने क्षेत्र में पशु-गणना तथा जनगणना से सम्बन्धित कार्यों में सहयोग प्रदान करता है।
विभिन्न चुनावों के लिए मतदाता सूचियों में आवश्यक संशोधन करता है एवं उन्हें तैयार करता है। भूमि-नामान्तकरण, कृषि जोत, मालिकाना हक आदि कार्य इसी के द्वारा किया जाता है।
भू-राजस्व से सम्बन्धित सभी बकाया राशियों की वसूली इसी के द्वारा की जाती है तथा इसके द्वारा यह राशि तहसील राज-कोष में जमा कराई जाती है। अतिवृष्टि या अनावृष्टि के समय फसल नष्ट होने के बारे में आवश्यक जानकारी तथा अपने वार्षिक रिकॉर्डों के बारे में समय-समय पर जानकारी पटवारी ही उच्चाधिकारियों को देता है।
ग्राम पंचायत की बैठक में भाग लेकर भूमि सम्बन्धी कार्यों के बारे में आवश्यक जानकारी प्राप्त करता है। भूमि- सम्बन्धी विभिन्न लेखों को अपने पास सुरक्षित रखता है।
जिला प्रशासन के विभिन्न विभागों की बैठकों में भाग लेकर आवश्यक जानकारी प्राप्त करता है और विकास योजनाओं को क्रियान्वित करने में सहयोग प्रदान करता है। ग्राम पंचायत क्षेत्र में विभिन्न विभागों में आवश्यक समन्वय स्थापित करता है तथा सरकार के कार्यक्रमों को सफल बनाता है।
अपने क्षेत्र में किसी मंत्री या विधायक के आने पर उन्हें अपने क्षेत्र के बारे में आवश्यक जानकारी देता है। अपने क्षेत्र के काश्तकारों तथा भूमि-धारकों से इसका सीधा सम्पर्क होता है जिसके कारण यह जनहित कार्यों को अधिक निपुणता से करता है।
इसके द्वारा अपने क्षेत्र में किसी प्राकृतिक आपदाओं अकाल, बाढ़, सूखा, ओलावृष्टि, महामारी से सम्बन्धित जानकारी उपलब्ध कराई जाती है। यह अपने वार्षिक रजिस्ट्ररों की खेवट, खथौनी के रूप में रखता है तथा इनमें भूमि-धारकों एवं भूमि-काश्त करने वालों के बारे में उपयुक्त जानकारी लिखता है।
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