Rajasthan ke Pramukh Mandir - राजस्थान के प्रमुख मंदिर
राजस्थान के प्रमुख मंदिर (Major temples of Rajasthan) - इस पोस्ट में हम Rajasthan ke Pramukh Mandir - राजस्थान के प्रमुख मंदिर के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी और नोट्स प्राप्त करेंगे ये पोस्ट आगामी Exam REET, RAS, NET, RPSC, SSC, india gk के दृस्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है
राजस्थान के प्रमुख मंदिर -
Rajasthan ke Pramukh Mandir - राजस्थान के प्रमुख मंदिर
राजस्थान में मंदिरों का निर्माण बहुत प्राचीनकाल से अलग-अलग शैलियों में हो रहा है जिनमें मुख्य शैलियाँ निम्नलिखित है-
(अ) एकायतन- शैली-एकायतन शैली के देव मंदिर में एक ही देव मंदिर होता है, जिसके अंतर्गत एक गर्भगृह, सभामंडप एवं द्वार होते हैं।
(ब) पंचायतन शैली-इस शैली के मंदिरों के अंतर्गत एक मुख्य (भगवान विष्णु का) मंदिर होता है तथा उसके पास अन्य छोटे चार मंदिर (शिव, सूर्य, शक्ति एवं गणेश के) होते हैं। ये चारों मंदिर मुख्य मंदिर के चारों कोनों में स्थित होते हैं।
(स) नागर शैली - उत्तर भारत प्रचलित शिखरयुक्त नागर शैली में मंदिर बनाए जाते हैं जो राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में सर्वाधिक पाए जाते हैं। इसी नागर शैली को हम 'आर्य शैली' के नाम से भी जानते हैं।
ध्यातव्य रहे-नागर शैली की उपशैली 'भूमिज शैली' है। पाली जिले में स्थित सेवाड़ी का जैन मंदिर राजस्थान में भूमिज शैली का सबसे पुराना मंदिर (1010-20 ई.) है।
(द) द्रविड़ शैली - दक्षिण भारत में प्रचलित पिरामिडनुमा मंदिरों का निर्माण द्रविड़ शैली में किया जाता है। इन मंदिरों की छतें या शिखर 'गजपृष्ठकृत' होती हैं।
(द) बेसर शैली/चालुक्य शैली-द्रविड़ तथा नागर शैली के मिश्रित रूप से 'बेसर शैली/चालुक्य शैली' मध्य भारत में सर्वाधिक प्रचलित है।
ध्यातव्य रहे- फर्ग्यूसन ने हिंदु कारीगरों द्वारा मुस्लिम आदर्श भवन बनाने पर इसे 'इण्डो सार सैनिक शैली' कहा है। राणा कुंभा द्वारा बनाए गए सभी मंदिरों में 'प्रस्तर शैली' का उपयोग हुआ है।
भरतपुर जिले के प्रमुख मंदिर
उषा मंदिर/मस्जिद, बयाना (भरतपुर) - उषा मंदिर भरतपुर जिले के
'बयाना' कस्बे में स्थित है। जिसका निर्माण बाणासुर' ने करवाया था। प्रेमाख्यान पर
आधारित इस मंदिर का जीर्णोद्धार | गुर्जर प्रतिहार राजा लक्ष्मणसेन की पत्नी 'चित्रलेखा'
(चित्रागंदा) व उसकी पुत्री 'मंगलाराज' ने 336 ई. में करवाया था। 1224 ई. में दिल्ली
सुल्तान इल्तुतमिश ने इसे तोड़कर मस्जिद में बदलवा दिया, तभी से यह मंदिर उषा मस्जिद
के नाम से जाना जाता है।
लक्ष्मण मंदिर (भरतपुर)- भरतपुर शहर के मध्य में स्थित लक्ष्मण
मंदिर का निर्माण महाराजा बलदेव सिंह ने 19वीं शताब्दी के मध्य में करवाया था। यह भारत
का एक मात्र लक्ष्मण मंदिर है। श्री लक्ष्मण जी भरतपुर के जाट राजवंश के कुल देवता
है।
उदयपुर जिले के प्रमुख मंदिर
एकलिंग जी का मंदिर (उदयपुर) - उदयपुर के उत्तर में स्थित नागदा
(कैलाशपुरी) नामक स्थान पर एकलिंगजी का प्रसिद्ध शिव मंदिर है, जो लकुलीश सम्प्रदाय
से संबंधित है। एकलिंग जी मेवाड़ के महाराणाओं के इष्टदेव व कुल देवता है। इस मंदिर
का निर्माण बप्पा रावल ने करवाया था। यह मंदिर राज्य में पाशुपात सम्प्रदाय का सबसे
प्रमुख स्थल भी है। है
ध्यातव्य रहे-महाराणा इन्हें ही मेवाड़ राज्य का वास्तविक
शासक मानते थे तथा स्वयं को उनका दीवान कहलाना पसंद करते थे।
अम्बिका देवी का मंदिर-
जगत (उदयपुर) में स्थित
अम्बिका देवी के मंदिर मेंनृत्य करते हुए गणेशजी की विशाल प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर
को 'मेवाड़ का खजुराहो' कहते हैं।
सास-बहू का मंदिर, नागदा (उदयपुर) -
मेवाड़ की प्राचीन
राजधानी नागदा में स्थित मंदिर मूलत: 'सहस्त्रबाहु' (भगवान विष्णु) का है, लेकिन अपभ्रंश
होते-होते इसका नाम 'सास-बहू का मंदिर' हो गया।
जगदीश मंदिर (उदयपुर) -
इस मंदिर का निर्माण महाराणा जगतसिंह प्रथम ने 1651 ई. में उदयपुर में स्थित सिटी पैलेस के नजदीक पिछोला झील के किनारे करवाया था।
ध्यातव्य रहे-यहाँ स्थित गरूड़ की प्रतिमा विश्व की सर्वश्रेष्ठ प्रतिमा कही जाती है। इसे 'सपने से बना मंदिर' कहा जाता है।
मेवाड़ का अमरनाथ, गुप्तेश्वर मंदिर-
उदयपुर जिला मुख्यालय से 10 किमी दूर तीतरड़ी एकलिंगपुरा के बीच हाड़ा पर्वत स्थित गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर है, जो गिरवा के अमरनाथ के नाम से जाना जाता है। इसको 'मेवाड़ का अमरनाथ' भी कहा जाता है। जावर का विष्णु मंदिर, उदयपुर-जावर (उदयपुर) में रमानाथ कुंड और भगवान विष्णु के इस मंदिर का निर्माण रमाबाई द्वारा करवाया गया था।
कोटा जिले के प्रमुख मंदिर
कंसुआ का शिव मंदिर (कोटा)-कंसुआ का शिव मंदिर कोटा शहर में स्थित है। यहाँ एक ऐसा शिवलिंग भी है जो 1008 मुखी है।
मथुराधीश मंदिर (कोटा) -
पाटनपोल (कोटा) में भगवान मथुराधीश का मंदिर है जो भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। इस मंदिर की स्थापना वल्लभ सम्प्रदाय के संस्थापक वल्लभाचार्य के पुत्र विठ्ठलनाथजी द्वारा की गई थी। जिसके कारण यह मंदिर वैष्णव संप्रदाय का प्रमुख पीठ स्थल है।
विभिषण मंदिर, कोथून (कोटा)-
देश का एक मात्र विभिषण मंदिर कोटा जिले के कोथून कस्बे में स्थित है। इस मूर्ति का धड़ (शरीर) नहीं है। मंदिर में केवल विभिषण की मूर्ति के शीश की पूजा राम भक्त मानकर की जाती है। गेपरनाथ महादेव (कोटा) कोटा में स्थित 'गेपरनाथ महादेव का मंदिर' जो जमीन की सतह से लगभग 300 फुट नीचे एक गर्भ में स्थित है। वर्ष 2009 में इस मंदिर की सीढ़ी टूट जाने के कारण कुछ श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी।
बीकानेर जिले के प्रमुख मंदिर
श्री कपिल मुनि का मंदिर (बीकानेर) कोलायत (बीकानेर) सांख्य दर्शन के प्रणेता कपिल मुनि का तीर्थ स्थल है। यहाँ स्थित सरोवर के किनारे 52 घाट और 5 मंदिर बने हुए हैं। यहाँ भरने वाला कोलायत जी का मेला जांगल प्रदेश का सबसे बड़ा मेला है।
हेरंब गणपति (बीकानेर)-हेरंब गणपति मंदिर का निर्माण बीकानेर शासक अनूपसिंह ने करवाया था। इस अद्भुत मूर्ति की एक विलक्षण बात यह भी है कि गणपति मूषक पर सवार न होकर सिंह पर सवार है।
ध्यातव्य - यह प्रतिमा तैंतीस करोड़ देवी-देवता मंदिर (बीकानेर) में स्थित है।
बाड़मेर जिले के प्रमुख मंदिर
किराडू (बाड़मेर)- यह
स्थान बाड़मेर तहसील के हाथमा गाँव के पास स्थित 'हल्देश्वर' पहाड़ी के नीचे स्थित है। सन् 1161 के शिलालेख से जानकारी मिलती है, कि यह जगह किरातकूप कहलाती थी। शिल्पकला के लिए विख्यात यह मंदिर 'मूर्तियों का खजाना' कहलाता है। किराडू की स्थापत्य कला भारतीय नागर शैली की है। राजस्थान का किराडू मंदिर खजुराहो के समान काम कीड़ाओं के चित्रण के कारण इसे 'राजस्थान का खुजराहो' भी कहा जाता है।
हल्देश्वर महादेव पीपलूद (बाड़मेर)-
हल्देश्वर महादेव पीपलूद (मारवाड़ का लघु माउंट आबू) गाँव (बाड़मेर) के समीप छप्पन की पहाड़ियों में स्थित है।
श्री रणछोड़ राय जी का खेड़ मंदिर, बाड़मेर-
प्रमुख वैष्णव तीर्थ का पवित्र धाम श्री रणछोड़राय जी के मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् 1230 में हुआ था।
ध्यातव्य-खेड़ (बाड़मेर)- में भूरिया बाबा और खेड़िया बाबा रेबारियों के आराध्य देव है।
आलम जी का धोरा, गुढामलानी (बाड़मेर)-
धोरीमन्ना पंचायत समिति मुख्यालय (बाड़मेर) की पहाड़ी पर आलम जी का मंदिर बना हुआ है। यह स्थल 'घोड़ों के तीर्थ स्थल' के उपनाम से भी प्रसिद्ध है।
मल्लीनाथ जी का मंदिर, तिलवाड़ा (बाड़मेर)-
लूणी नदी के किनारे
तिलवाड़ा ग्राम (बाड़मेर) में राव मल्लीनाथ ने समाधि ली थी।
ब्रह्मा जी का दूसरा मंदिर, आसोतरा (बाड़मेर )-
आसोतरा बाड़मेर में स्थित ब्रह्माजी के मंदिर का निर्माण खेतरामजी महाराज द्वारा 1984 में करवाया गया।
सीकर जिले के प्रमुख मंदिर
खाटू
श्याम जी (सीकर) - सीकर जिले के खाटू गाँव में खाटू श्याम जी का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। यहाँ के एक शिलालेख के अनुसार 1720 ई. में अजमेर के राज राजेश्वर अजीतसिंह सिसोदिया के पुत्र अभयसिंह ने वर्तमान में खाटू श्याम मंदिर की नींव रखी। यहाँ प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ला एकादशी और द्वादशी को विशाल मेला लगता है।
सप्त गौ माता मंदिर -
रेवासा सीकर में स्थापित सप्त गौ माता का मंदिर राजस्थान का प्रथम मंदिर है और भारत का चौथा गौ माता मंदिर माना जाता है।
हर्षनाथ मंदिर (सीकर) -
यह मंदिर सीकर से 14 किलोमीटर दूर 3000 हजार फुट ऊँची हर्षनाथ पहाड़ी पर महामारू शैली में निर्मित है। इस मंदिर का निर्माण 956 ई. में अजमेर चौहान शासक विग्रहराज चतुर्थ के शासनकाल में हुआ।
सवाईमाधोपुर जिले के मंदिर
त्रिनेत्र गणेश मंदिर (सवाई माधोपुर) - त्रिनेत्र गणेशजी का मंदिर रणथंभौर दुर्ग (सवाई माधोपुर) में स्थित है। यहाँ पर स्थित गणेश जी विश्व में एक मात्र त्रिनेत्र गणेश जी है।
ध्यातव्य रहे- भारत में सर्वाधिक कुमकुम पत्रियाँ (विवाह निमंत्रण पत्र) यहीं पर आते हैं।
घुश्मेश्वर महादेव, शिवाड़ (सवाई माधोपुर) -
शिवाड़ गाँव (सवाई माधोपुर) में भगवान शिव का 12वाँ ज्योर्तिलिंग (देश में कुल बारह ज्योतिलिंग है।) स्थापित हैं। यह शिवाड़ प्राचीन काल में ग शिवालय के नाम से जाना जाता था।
ध्यातव्य रहें:- घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग, रामेश्वर घाट, अमश्वर महादेव के मंदिर सवाईमाधोपुर में स्थित है।
काला जी- गौरां जी का मंदिर (सवाई माधोपुर )-
यह मूर्ति लटकती सी प्रतीत होती है, इसी कारण इसे झूलता भैरूजी का मंदिर भी कहते हैं।
जयपुर के प्रमुख मंदिर
श्री गोविंद देव जी, जयपुर-भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र राजा वज्रनाथ ने अपनी दादी के बताए अनुसार भगवान श्री कृष्ण के तीन विग्रहों का निर्माण करवाया था। इनमें से पहला विग्रह गोविंद देव जी (जयपुर) का दूसरा विग्रह गोपीनाथ जी (जयपुर) का तथा तीसरा विग्रह श्री मदन मोहन जी (करौली) का है। पहले ये तीनों विग्रह मथुरा में ही स्थापित थे लेकिन महमूद गजनवी के भारत आक्रमण के समय में विग्रह भूमि में दबा दिए गए। 1772 ई. में सवाई जयसिंह ने अपने आराध्य श्री गोविंद देव जी को अपने निवास चंद्रमहल (सिटी पैलेस) के निकट जयनिवास उद्यान में बने सूर्य महल में स्थापित किया।
ध्यातव्य रहे- जयपुर नरेश श्री गोविंद देव जी को जयपुर का वास्तविक शासक और स्वयं को उनका दीवान मानकर शासन करते थे।
श्री गोपीनाथ जी (जयपुर) -
श्री गोपीनाथ जी का विग्रह भी श्री गोविंद देव जी के साथ जयपुर आया था। जिसे 1772 ई. में जलमहल के समीप 'कनक वृंदावन' में एक भव्य मंदिर में स्थापित कर दिया गया।
राजेश्वर शिवालय (जयपुर) -
मोती डूंगरी (जयपुर) इसका निर्माण 1864 ई. में जयपुर नरेश रामसिंह द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर जयपुर राजाओं का निजी मंदिर है। यह मंदिर जन साधारण के लिए वर्ष में केवल एक बार महाशिवरात्रि के दिन ही खुलता है।
मोती डूंगरी गणेश मंदिर (जयपुर) -
इसकी स्थापना व मंदिर ह निर्माण 1761 ई. में माधोसिंह द्वारा करवाया गया।
बिड़ला मंदिर / लक्ष्मीनारायण मंदिर (जयपुर) -
बिड़ला मंदिर का निर्माण गंगाप्रसाद बिड़ला ने हिंदुस्तान चैरिटी ट्रस्ट के माध्यम से करवाया। यह मंदिर एशिया का प्रथम वातानुकूलित मकराना के सफ़ेद संगमरमर से निर्मित है।
जगत शिरोमणी मंदिर या मीरां मंदिर (आमेर ) जयपुर-इस मंदिर का निर्माण आमेर नरेश मानसिंह प्रथम की पत्नी कनकावती ने अपने पुत्र जगतसिंह की याद में करवाया था।
गलता जी (जयपुर)-
यहाँ पर प्राचीन समय में गालव ऋषि का में आश्रम था। यह गालव ऋषि का आश्रम होने के कारण कलान्तर में में गलता जी कहा जाने लगा। गलता जो में पूर्व मध्य काल में नाथ संप्रदाय की गद्दी थी, परंतु 1503 ई. में रामानुज संप्रदाय के परिहारी ने आमेर नरेश पृथ्वीराज के गुरु तारानाथ जी को शास्त्रार्थ युद्ध में पराजित कर यहाँ रामानंदी संप्रदाय की स्थापना की। मध्य काल में इसे उत्तर भारत की तोतात्रि' कहा जाता था। वर्तमान में इसे जयपुर का बनारस कहा जाता है, इसलिए जयपुर को राजस्थान की दूसरी/ छोटी काशी' के उपनाम से भी जाना जाता है। बंदरों की अत्यधिक संख्या के कारण यह 'मंकी वैली' भी कहलाती है। गलता तीर्थ पर स्थित मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है।
सूर्य मंदिर ( आमेर, जयपुर )-
आमेर का सबसे प्राचीन न पूर्वाभिमुख सूर्य मन्दिर का निर्माण आमेर के नागरिक चामुण्डहरि नी के पुत्र ने करवाया था।
कल्याणरायजी का मंदिर, आमेर, जयपुर-आमेर नरेश भगवन्तदास ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
लक्ष्मीनारायण का मंदिर, आमेर (जयपुर)- आमेर नरेश पृथ्वीराज ने कछवाहा की पत्नी बालाबाई एक हरिभक्त थी। उन्होंने ही इस लक्ष्मीनारायण मंदिर का निर्माण (आमेर दुर्ग में) करवाया था।
अंबिकेश्वर महादेव मंदिर, आमेर (जयपुर) -
अंबिकेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कोकिलदेव ने 1037 ई. में आमेर विजय के उपलक्ष्य में करवाया था। इसका जीर्णोद्धार मिर्जा राजा जयसिंह ने करवाया।
कल्कि मंदिर, जयपुर -
जयपुर महाराजा सवाई जयसिंह ने अपने पौत्र सवाई ईश्वरी सिंह के पुत्र की याद में पुराणों के आधार पर जिस देवता का अवतार अभी तक नहीं हुआ उसके अनुमान से यह मंदिर बनवाया। इस कल्कि मंदिर का निर्माण दक्षिणायन शिखर शैली में सन् 1739 ई. में करवाया। यह मंदिर मूलरूप से भगवान विष्णु को समर्पित है तथा विश्व का एकमात्र कल्कि भगवान का मंदिर है।
राजसमंद जिले के प्रमुख मंदिर
चारभुजा नाथ मंदिर, गढ़बोर (राजसमंद) - श्री चार भुजा नाथ न जी का मंदिर मेवाड़ के चार प्राचीन धामों (केसरिया जी, कैलाशपुरी, नाथद्वारा तथा चारभुजा नाथ जी) में गिना जाता है। यह चार भुजाओं वाली प्रतिमा पांडवों द्वारा भी पूजी गई थी। यहाँ पर वर्ष में दो बार र होली व देव झूलनी एकादशी पर मेलों का आयोजन होता है। इसे मेवाड़ का वारीनाथ भी कहते हैं।
नाथद्वारा ( श्री नाथ जी )/ सप्त ध्वजा का नाथ राजसमंद -
श्री नाथ जी का प्रसिद्ध मंदिर बनास नदी के तट पर राजसमंद जिले में स्थित है।
महाराणा राजसिंह ने इस मूर्ति को 1691 ई. में सिहाड़ नामक गाँव में स्थापित करवाया
जो कालांतर में श्रीनाथ जी के नाम पर नाथद्वारा हो गया। यहाँ श्रीनाथ की सेवा पद्धति
में सात प्रकार के दर्शन होते हैं। श्रीनाथजी के मंदिर को 'हवेली' कहते हैं, तो यहाँ
की गायकी 'हवेली संगीत' कहलाती है। यह मंदिर वल्लभ संप्रदाय की मुख्य गद्दी है।
ध्यात्वय रहें:- नाथद्वारा में श्रीनाथ जी की मूर्ति औरंगजेब के
समय वृंदावन के जतीपुरा से लाई गई थी।
द्वारिकाधीश मंदिर (राजसमंद) -
यह मंदिर वल्लभ (पुष्टिमार्गी) संप्रदाय का मंदिर
है। पहले यह विग्रह कांकरोली के निकट आसोटियां ग्राम में स्थापित किया गया, परंतु वर्तमान
में यह मंदिर राजसमंद झील के तट पर स्थित है।
झालावाड़ के प्रमुख मंदिर
झालरापाटन का सूर्य
मंदिर (झालावाड़)- झालरापाटन शहर के बीच खजुराहो
शैली में बने इस मंदिर को सात सहेलियों का मंदिर और पद्मनाथ मंदिर भी कहा जाता है।
कर्नल टॉड ने इसे चारभुजा मंदिर कहा है। शीतलेश्वर महादेव मंदिर, झालरापाटन (झालावाड़
) झालावाड़ जिले में चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित झालरापाटन का शीतलेश्वर मंदिर
689 ई. में महामारू शैली में निर्मित है। यह मंदिर राज्य में स्थित तिथि अंकित मंदिरों
में सबसे अधिक प्राचीन है। जिसमें अर्द्धनारीश्वर (आधा शरीर शिव का तथा आधा शरीर उमा
का) प्रतिमा स्थापित है।
चित्तौड़गढ़ के प्रमुख मंदिर
बाड़ौली का शिव मंदिर
/ घाटेश्वर महादेव ( चित्तौड़गढ़) - बाड़ौली का प्रसिद्ध आठवीं शताब्दी में निर्मित शिव मंदिर चित्तौड़गढ़ जिले में
भैसरोड़गढ़ कस्बे के पास स्थित है। बाड़ौली में कुल नौ मंदिर है जो आठवीं से ग्यारवीं
शताब्दों के मध्य नागर शैली में बने हुए है। बाड़ोली के मंदिरों को सर्वप्रथम प्रकाश
में लाने का श्रेय कर्नल जेम्स टॉड को जाता है।
मीरां बाई का मंदिर (चित्तौड़गढ़ दुर्ग) -
इस मंदिर का निर्माण
महाराणा सांगा ने अपनी पुत्रवधू मीरां की भक्ति के लिए महल के रूप में करवाया था। मंदिर
के सामने मीरा के गुरु रैदास की छतरी स्थित है।
समिद्धेश्वर महादेव मंदिर (चित्तौड़गढ़) -
इस मंदिर का निर्माण मालवा के पराक्रमी परमार नरेश राजा भोज (1011-55 ई.) ने करवाया था। महाराणा मोकल ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था इसी कारण इस मंदिर को 'मोकल जी का मंदिर' भी कहा जाता है। सांवलिया सेठ का मंदिर (चित्तौडगढ़) - श्री सांवलिया जी सेठ का मंदिर मंडफिया गाँव (चित्तौडगढ़) में स्थित है जिसे अफीम मंदिर' के नाम से जानते हैं। इस मंदिर में श्री कृष्ण भगवान की काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है। यहाँ जल झूलनी एकादशी को विशाल मेला भरता है।
कुंभ श्याम मंदिर (चित्तौड़गढ़ दुर्ग)-
यह मंदिर मूल रूप से सूर्य मंदिर था। लेकिन मलेच्छों
द्वारा मंदिर को नष्ट करने के कारण 1449 ई. में मेवाड़ के महराणा कुंभा ने अपने इष्ट
देव भगवान विष्णु के वराह अवतार की मूर्ति को स्थापित कराकर इसका जीर्णोद्धार करवाया।
लेकिन कुंभा द्वारा अपने आराध्य की मूर्ति इसमें स्थापित करवाए जाने कारण यह मंदिर
कुंभ श्याम मंदिर के नाम से जाना जाने लगा।
कालिका माता का मंदिर, चित्तौड़गढ़ -
राजस्थान में सूर्य
को समर्पित प्राचीनतम मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में है। इस मंदिर का निर्माण मौर्य वंशी
राजमान ने 713 ई. में करवाया था। मुगल आक्रमणों के कारण मंदिर को नष्ट करने के बाद
महाराणा सज्जन सिंहजी ने इसके गर्भगृह में कालिका माता की मूर्ति स्थापित करवाई जो
वर्तमान में अब कालिका माता के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
मातृकुंडिया, चित्तौड़गढ़ -
मातृकुंडिया (राशमी पंचायत समिति) चित्तौड़गढ़ में
चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित मातृकुंडिया तीर्थ स्थल 'राजस्थान का हरिद्वार मेवाड़
का प्रयाग' के नाम से जाना जाता है। क्योंकि यहाँ पर स्थित कुंड के पवित्र जल में मृत
व्यक्ति की अस्थियाँ विसर्जित की जाती है तथा हरिद्वार की तरह यहाँ पर भी 'लक्ष्मण
झूला' लगा हुआ है।
करौली जिले के प्रमुख मंदिर
श्री मदनमोहन जी मंदिर
(करौली)- यह मंदिर माधीय गौड़ीय संप्रदाय से संबंधित है।
करौली के राजा गोपालसिंह जी 1728 ई. में मदन मोहन के विग्रह को जयपुर से गुंसाई सुबलदास
जी के माध्यम से करौली ले आये और 1748 ई. में उन्होंने वर्तमान मंदिर बनवाया।
अजमेर जिले के प्रमुख मंदिर
ब्रह्मा मंदिर, पुष्कर
(अजमेर)- ब्रह्मा जी का सबसे अधिक प्राचीन मंदिर पुष्कर
(अजमेर) में स्थित है। जहाँ पर विधिवत रूप से पूजा की जाती है। इस मंदिर का निर्माण
आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा करवाया गया तथा इस मंदिर को वर्तमान स्वरूप 1809 ई. में
गोकुल चंद पारीक ने दिया। इस मंदिर में ब्रह्मा जी की आदमकद की चतुर्मुखी मूर्ति प्रतिष्ठित
है। ब्रह्मा मंदिर होने के कारण पुष्कर ब्रह्मा नगरी भी कहलाता है।
सोनी जी की नसियां -
यह तीर्थकर भगवान ऋषभदेव का मंदिर है, जिसका निर्माण
स्व. सेठ मूलचंद सोनी ने प्रारम्भ करवाया तथा इनके पुत्र टीकमचंद सोनी ने इसे पूर्ण
करवाया।
सावित्री मंदिर, पुष्कर (अजमेर) -
पुष्कर में ब्रह्मा
मंदिर के पीछे एक ऊँची पहाड़ी पर ब्रह्मा जी की पत्नी सावित्री जी का मंदिर है। इसी
मंदिर में 3 मई, 2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने रोप वे का उद्घाटन किया।
वराह मंदिर (पुष्कर, अजमेर) -
मंदिर का निर्माण
पृथ्वीराज चौहान के पितामह अर्णोराज ने करवाया था।
रंगनाथ जी पुष्कर (अजमेर) -
वैष्णव संप्रदाय की रामानुज शाखा के रंगनाथ जी का
मंदिर दिव्य तथा आकर्षक है जिसका निर्माण 1844 ई. में सेठ पूरणमल द्वारा करवाया गया।
यह मंदिर भगवान विष्णु और लक्ष्मी सिंह पर सवार तथा नृसिंह जी की मूर्तियों से मंडित
है। यह मंदिर अपनी गोपुरम आकृति के लिए प्रसिद्ध है।
महादेव जी का मंदिर, पुष्कर (अजमेर) -
इस शिव मंदिर का
निर्माण ग्वालियर के अन्नाजी सिंधिया द्वारा पुष्कर में करवाया गया।
रमाबैकुंठ जी का मंदिर, पुष्कर (अजमेर) -
यह मंदिर वैष्णव संप्रदाय की रामानुजाचार्य शाखा
से संबंधित है।
काचरिया मंदिर, किशनगढ़ (अजमेर) -
किशनगढ़ में स्थित
इस मंदिर में कृष्ण एवं राधा की मूर्ति स्थित है जिसकी पूजा निंबार्क संप्रदाय के अनुसार
की जाती है।
ध्यातव्य रहे:- प्राचीन राजस्थान की मूर्तिकला का प्रतीक 'नाद
की शिव प्रतिमा' अजमेर जिले से प्राप्त हुई है।
बारां जिले के प्रमुख मंदिर
भंडदेवरा शिव मंदिर
(बारां)/ हाड़ौती का खुजराहो- 10वीं शताब्दी
में इसका निर्माण मेदवंशीय राजा मलय वर्मा द्वारा करवाया गया था। देवालय में उत्कीर्ण
मूर्तियाँ कला की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। जिनमें मिथुन मुद्रा में अनेक
आकृतियाँ अंकित की गई है, जिससे यह राजस्थान का मिनी खजुराहो' भी कहा जाता है।
काकूनी धाम, बारां -
यह स्थान परवन नदी के किनारे पहाड़ी पर स्थित है,
यहाँ प्राचीनकाल में 108 मंदिरों की श्रृंखला हुआ करती थी।
ब्राह्मणी माता का मंदिर (बारां) -
सौरसेन (बारा) में
ब्रह्माणी माता का मंदिर स्थित है जो भारत में एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसमें देवी की
मूर्ति के आगे की पूजा न करके उसके पीठ की पूजा की जाती है।
फूलदेवरा का शिवालय
(बारां)- अटरू (बारा) में स्थित शिवालय के निर्माण में चूने
का प्रयोग नहीं किया गया। इस मंदिर को मामा-भांजा का मंदिर भी कहते हैं।
गडगच्च देवालय, अटरू (बारां) -
अटरू (बारां) में
बने 10वीं शताब्दी के शिव मंदिर को औरंगजेब ने तोपों से तुड़वा दिया था। इसी कारण इस
मंदिर को गडगच्च देवालय कहते हैं।
चुरू जिले के प्रमुख मंदिर
सालासर हनुमान मंदिर,
सुजानगढ़, चुरू यहाँ स्थित हनुमान मूर्ति में केवल शीश की ही पूजा की जाती है। सालासर
हनुमान का विग्रह स्वर्ण सिंहासत पर विराजमान है जिनकी मुखाकृति पर दाढ़ी मूँछ है।
ध्यातव्य रहे-सालासर बालाजी के मंदिर का आरंभिक निर्माण कार्य
दो मुस्लिम कारीगरों नूरा और दाऊद ने किया।
तिरूपति बालाजी मंदिर- यह चूरू जिले के सुजानगढ़ में स्थित है।
गोगाजी का मंदिर, ददरेवा (चुरू) -
ददरेवा (चुरू) में
गोगाजी का शीश आकर गिरा था इसी कारण इसे शीशमेढ़ी भी कहते हैं। गोगाजी की याद में यहाँ
पर मंदिर बनाया गया, जहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण नवमी (गोगानवमी) को मेला भरता है।
अलवर जिले के प्रमुख मंदिर
भर्तृहरि मंदिर, सरिस्का,
अलवर-उज्जैन के राजा और महान् योगी
भृर्तहरि ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में सरिस्का (अलवर) को ही अपनी तपोस्थली बनाया
था, और यहीं समाधि ली थी। इसे कनफटे साधुओं का कुंभ' भी कहते हैं।
पांडुपोल हनुमानजी का मंदिर (अलवर) -
भर्तृहरि (अलवर) से कुछ दूरी पर पांडुपोल में लेटे
हुए हनुमानजी का मंदिर (शयन मुद्रा में स्थित है।
नीलकंठ महादेव, अलवर -
अलवर जिले के दर्शनीय स्थलों में नीलकंठ महादेवजी का मंदिर भी प्रसिद्ध है, जिसमें नृत्य करते हुए गणेश जी की मूर्ति है।
सोमनाथ मंदिर, भानगढ़ (अलवर) -
यहाँ पर स्थित सोमनाथ मंदिर
गुजरात के सोमनाथ मंदिर की प्रतिकृति है जो केवल संपूर्ण राज्य में यहीं भानगढ़ में
अवस्थित है।
बूढ़े जगन्नाथजी का मंदिर, अलवर -
जहाँ का सबसे बड़ा
आकर्षण हिंदुओं के चार धामों में से एक उड़ीसा के जगन्नाथपुरी की तरह की रथयात्रा है
जो प्रतिवर्ष बढ़लिया नवमी को शुरू होती है।
बाँसवाड़ा जिले के प्रमुख मंदिर
घोटिया अंबा, बाँसवाड़ा-
यहीं पर महाभारत के अनुसार,
पांडवों ने श्रीकृष्ण की सहायता से 88 हजार ऋषियों को भोजन कराया था। घोटिया अंबा स्थल
पर प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को मेला लगता है।
कालिंजरा के जैन मंदिर- यह बाँसवाड़ा में हिरण नदी के त किनारे पर बसे
जैन मंदिर है।
तलवाड़ा का प्राचीन सूर्य मंदिर (बांसवाड़ा) -
तलवाड़ा (बांसवाड़ा)
में 11वीं शताब्दी के आसपास का बना हुआ जीर्ण शीर्ण अवस्था में सूर्य मंदिर है, जिसमें
सूर्य की मूर्ति एक कोने में रखी हुई है। बाहर के चबूतरे पर सूर्य के रथ का चक्र टूटा
पड़ा है। उसके निकट श्वेत पत्थर की बनी हुई नवग्रहों की मूर्तियाँ हैं। सूर्य मंदिर
के पास ही 12वीं शताब्दी के आस-पास का बना हुआ लक्ष्मीनारायण मंदिर है, जिसके नीचे
का हिस्सा प्राचीन व ऊपर का भाग नया है।
मंडलेश्वर शिव मंदिर, अर्थना (बांसवाड़ा) -
बांसवाड़ा के अर्धना (ग्रंथों
में इसका नाम ' उत्थूनक') गांव में लकुलीश सम्प्रदाय का परमार कालीन शिव मंदिर स्थित
है।
त्रिपुरा सुंदरी मंदिर (बाँसवाड़ा) -
तलवाड़ा (बाँसवाड़ा) के समीप पाँचाल जाति की कुल देवी त्रिपुरा सुंदरी का भव्य मंदिर स्थित है। जिसकी पीठिका के मध्य में 'श्रीयंत्र' अंकित है। त्रिपुरा सुंदरी को ही हम ' तुरताय माता/महालक्ष्मी' के नाम से भी जानते हैं। यह वसुंधरा राजे की आराध्य देवी है।
भीलवाड़ा जिले के प्रमुख मंदिर
सवाई भोज मंदिर, आसीन्द,
भीलवाड़ा - खारी नदी के पास बना
यह मंदिर गुर्जर समुदाय का प्रमुख केन्द्र है।
तिलस्वां महादेव मंदिर (भीलवाड़ा) -
इस मंदिर की विशेषता
यह है कि कुष्ठ पीड़ित व चर्मरोग से पीड़ित व्यक्ति यहाँ स्वास्थ्य लाभ के लिए अधिक
मात्रा में आते हैं।
हरणी महादेव मंदिर (भीलवाड़ा) -
यहाँ पहाड़ियों के बीच स्थित इस स्थान पर सन्
1835 का ताम्रपत्र मिला है।
बाईसा महारानी मंदिर (भीलवाड़ा) -
भीलवाड़ा जिले के गंगापुर कस्बे में ग्वालियर के
महाराजा महादजी सिंधिया की महारानी गंगाबाई का प्रसिद्ध मंदिर हैं। महारानी गंगाबाई
की उदयपुर से लौटते समय II अगस्त, 1971 को इस स्थान पर मृत्यु हो गई थी। उनकी स्मृति में
यहाँ मंदिर बनवाया गया। जिसे बाईसा महारानी / गंगाबाई का मंदिर' कहते हैं। इस मंदिर
में गंगारानी की ही मूर्ति स्थापित है।
डूंगरपुर जिले के प्रमुख मंदिर
बेणेश्वर महादेव धाम,
डूंगरपुर-बेणेश्वर महादेव मंदिर
नवाटपुरा गाँव (डूंगरपुर) से करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर सोम, माही तथा जाखम तीनों
नदियों के संगम पर स्थित है। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग की विशेषता यह है कि यह स्वयं
भू शिवलिंग है जो खंडित अवस्था में है और यहाँ खंडित शिवलिंग की ही पूजा होती है। यहाँ
प्रतिवर्ष माघ शुक्ला एकादशी से माघ शुक्ला पूर्णिमा तक विशाल मेले का आयोजन होता है।
यह मेला भील जनजाति का मेला है। इस मेले को भीलों का कुंभ, आदिवासियों का कुंभ, वागड़
का कुंभ, वागड़ का पुष्कर आदि नामों से जाना जाता है। इसी त्रिवेणी संगम पर आदिवासी
अपने पूर्वजों की अस्थियों को प्रवाहित करते है।
देव सोमनाथ (डूंगरपुर) -
सफेद पत्थर से बने इस मंदिर में भव्य कंगूरे और बहुत से प्राचीन शिलालेख हैं।
गवरी बाई का मंदिर -
डूंगरपुर में स्थित गवरी बाई के प्रसिद्ध मंदिर
का निर्माण शिवसिंह ने करवाया। इसी गवरी बाई को हम 'वागड़ की मीरां' के नाम से जानते
हैं।
ध्यातव्य रहे- डूंगरपुर में फतेहगढ़ी नामक स्थान के सनसेट प्वाइंट
पर विवेकानंद व महाराजा बलि की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
दौसा जिले के प्रमुख मंदिर
मेंहदीपुर बालाजी
मंदिर (दौसा)- दौसा व करौली जिले की सीमा पर स्थित मेंहदीपुर बालाजी
के मंदिर के गर्भगृह में स्थित मूर्ति किसी कलाकार द्वारा गढ़कर नहीं लगाई गयी है,
बल्कि यह मूर्ति पर्वत का ही एक अंग है। यहाँ प्रेतराज सरकार व भैरवजी के मंदिर भी
स्थित हैं। यहाँ पर भूत-प्रेत की बाधाएँ, मिरगी, लकवे, पागलपन आदि रोग श्रीबालाजी महाराज
की कृपा से दूर हो जाते हैं। यहाँ दशहरा पर्व पर, दोनों नवरात्रों में एवं हनुमान जयन्ती
पर मेला लगता है।
आभानेरी (दौसा) -
पंचायतन शैली में बने हर्षद माता के मंदिर के लिए
आभानेरी (दौसा) प्रसिद्ध है। परंतु यह मूलतः विष्णु भगवान का मंदिर है जिसमें चतुर्व्यूह
विष्णु भगवान की मूर्ति एवं कृष्ण रुकमणि के पुत्र प्रद्युम्न की मूर्ति स्थापित है।
झुंझुनूं जिले के प्रमुख मंदिर
लोहार्गल, झुंझुनूँ - झुंझुनूं जिले के लोहार्गल नामक पवित्र स्थान मालकेतु
पर्वत की घाटी में स्थित है। इस तीर्थ की चौबीस कौसी परिक्रमा भाद्रपद माह में श्रीकृष्ण
जन्माष्टमी से अमावस्या तक हर वर्ष होती है। अमावस्या के दिन सूर्य कुंड में पवित्र
स्नान के साथ-साथ यह परिक्रमा विधिवत् समाप्त होती है। यह परिक्रमा मालखेत जी की परिक्रमा
भी कहलाती है।
रघुनाथजी का मंदिर (झुंझुनूँ) -
रघुनाथजी चुंडावत जी का मंदिर खेतड़ी का सबसे विशाल
एवं प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण राजा बख्तावर की पत्नी चुंडावती ने लगभग
150 वर्ष पूर्व करवाया था। इस मंदिर के गर्भगृह में स्थापित श्रीराम व लक्ष्मण की प्रतिमा
पूँछों वाली है।
जालौर जिले के प्रमुख मंदिर
सिरे मंदिर (जालौर)
- जालौर दुर्ग की निकटवर्ती
पहाड़ियों में स्थित सिरे मंदिर नाथ संप्रदाय के प्रसिद्ध ऋषि जालंधर नाथ की तपोभूमि
है। जहाँ मंदिर का निर्माण मारवाड़ रियासत के शासक राजा मानसिंह राठौड़ ने करवाया था।
अपनी विपत्ति के दिनों में उन्होंने यहाँ शरण ली थी। नाथ संप्रदाय के ऋषि जालंधर नाथ
की तपोस्थली होने के कारण जालौर 'राजस्थान का जालंधर' भी कहलाता है।
जोधपुर जिले के प्रमुख मंदिर
महामंदिर (जोधपुर)
महामंदिर जोधपुर नाथ संप्रदाय का प्रमुख तीर्थ स्थल एवं प्रमुख गद्दी है। यह भव्य मंदिर
84 खंभों पर निर्मित है जिसके अंदर जालंधर नाथ की प्रतिमा स्थापित है। इसका निर्माण
जोधपुर नरेश महाराजा मानसिंह ने 1872 ई. में करवाया था।
रावण मंदिर (जोधपुर) -
जोधपुर में उत्तरी भारत का
पहला रावण मंदिर है।
अधर शिला रामदेवजी का मंदिर (जोधपुर) -
जालौरिया का वास
(जोधपुर) में स्थित अधर शिला रामदेव मंदिर में बाबा रामदेव के पगल्ये पूजे जाते हैं।
इस मंदिर की यह विशेषता है, कि इस मंदिर का स्तंभ जमीन से आधा इंच ऊपर ऊठा हुआ है।
जिससे यह प्रतीत होता है कि यह मंदिर झूल रहा हो।
33 करोड़ देवी-देवताओं के मंदिर (जोधपुर) -
मंडौर (जोधपुर) में
33 करोड़ देवी-देवताओं का मंदिर / गद्दी साल स्थित है। इस मंदिर को 'Hall of Heroes' और 'वीरों की साल'
के नाम से भी जानते हैं।
नागौर जिले के प्रमुख मंदिर
चारभुजा मंदिर, मेड़ता
सिटी (नागौर)-भक्त शिरोमणि मीरां
बाई का विशाल मंदिर मेड़ता सिटी (नागौर) में स्थित है। इस मन्दिर को चारभुजा नाथ मन्दिर
के नाम से भी जाना जाता है। जिसका निर्माण मीरां बाई के पितामह (दादाजी) राव दूदा द्वारा
करवाया गया था।
टोंक जिले के प्रमुख मंदिर
कल्याणजी का मंदिर,
डिग्गी, मालपुरा, टोंक-डिग्गी के कल्याणजी
का मंदिर डिग्गी (मालपुरा-टोंक) में स्थित है। मेवाड़ के महाराणा संग्रामसिंह के शासनकाल
में निर्मित इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की चतुर्मुखी प्रतिमा स्थित है।
मुस्लिम इन्हें 'कलहण पीर' के नाम से पूजते हैं। जयपुर के ताड़केश्वर मंदिर से प्रतिवर्ष
लक्खी पद यात्रा डिग्गी कल्याणजी के जाती है। कल्याणजी के मंदिर का निर्माण राजा दिग्व
ने कराया था।
ध्यातव्य रहे-इसी लोकतीर्थ में स्थित लक्ष्मीनाथजी के मन्दिर
में लगे शिलालेख से सिद्ध होता है कि मेवाड़ के महाराणा सांगा की मृत्यु 30 जनवरी,
1528 को कालपी में थी और इनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्रों द्वारा उनकी आत्मा की
शान्ति के लिए यहाँ दान पुण्य किये गये थे
Very Most- कल्याणजी का एक मंदिर जयपुर में भी बना हुआ है। मांडव ऋषि की
तपोस्थली मांडकलां के सोलह प्राचीन मंदिर टोंक जिले में स्थित है।
बूँदी जिले के प्रमुख मंदिर
कंवलेश्वर / कपालीश्वर
महादेव मंदिर, बूँदी-कंवलेश्वर (कपालीश्वर)
महादेव का मध्यकालीन मंदिर इंदरगढ़ (बूँदी) में चाखण नदी के तट पर स्थित है।
ध्यातव्य रहे- शैव संप्रदाय के आचार्य मत्स्येंद्र नाथ की राज्य
में एकमात्र प्रतिमा इंद्रगढ़ (बूँदी) में चाखण नदी के तट पर कंवलेश्वर से मिली है।
केशवराय महादेव मंदिर, केशवरायपाटन (बूँदी) -
केशवराय पाटन (बूँदी)
में चंबल नदी के किनारे परशुराम जी ने शिव मंदिर का निर्माण करवाया जिसका जीर्णोद्धार
18वीं सदी में राव छत्रसाल ने करवाया।
सिरोही जिले के प्रमुख मंदिर
अचलेश्वर महादेव मंदिर, सिरोही- इस मंदिर में शिवलिंग न होकर एक गड्ढा है, जिसे 'ब्रह्मखड्ढ' कहा जाता है। इस स्थान पर भगवान शिव के पैर का अंगूठा प्रतीकात्मक रूप में विद्यमान हैं।
सारणेश्वर मंदिर (सिरोही)
सिरोही में स्थित सारणेश्वर महादेव के मंदिर का निर्माण महाराव दुर्जनशाल ने करवाया। ये देवड़ा चौहानों के कुल देवता हैं।
कुँवारी कन्या का
मंदिर- यह मंदिर देलवाड़ा के दक्षिण में पर्वत की तलहटी में स्थित है। इस मंदिर की
विशेषता यह है कि इसमें देव मूर्ति के स्थान पर दो पाषाण मूर्तियाँ स्थापित है। इन
दोनों मूर्तियों में से एक मूर्ति युवक की है। जिसके हाथ में विष का प्याला है तथा
दूसरी मूर्ति युवती की है। यह एक प्रेम प्रासंगिक मंदिर है इसी कारण इसे रसिया बालम
का मंदिर भी कहा जाता है।
0 Comments: