Rajasthan ke Mele - राजस्थान के मेले With Trick - राजस्थान समान्य ज्ञान की इस पोस्ट में हम Rajasthan ke Mele - राजस्थान के मेले के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी और नोट्स प्राप्त करेंगे ये पोस्ट आगामी Exam के दृस्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है
Rajasthan ke Mele - राजस्थान के मेले
Rajasthan ke Mele - राजस्थान के मेले |
1. बादशाह मेला - प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण प्रतिपदा (धूलण्डी) के दिन ब्यावर (अजमेर) में बादशाह मेला मनाया जाता है, जिसमें राजा टोडरमल की सवारी निकाली जाती है, जिसके आगे किया जाने वाला बीरबल का मयूर नृत्य / मोर नृत्य / भैरव नृत्य प्रसिद्ध है।
2. फूल डोल मेला-
प्रतिवर्ष चैत्र कृष्णा प्रतिपदा से पंचमी तक शाहपुरा (भीलवाड़ा) में स्थित रामद्वारा में फूलडोल का मेला मनाया में जाता है। ध्यान रहे-रामस्नेही सम्प्रदाय का वार्षिक महोत्सव फूलडोल कहलाता है।
3. शीतला माता का मेला-
प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण अष्टमी को शील की डूंगरी, चाकसू (जयपुर) में शीतला माता का मेला मनाया जाता है। यहां स्थित मंदिर का निर्माण माधोसिंह ने करवाया था।
4. ऋषभदेव जी / केसरिया नाथ / कालाजी का मेला-
प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण अष्टमी को धुलेव (उदयपुर) में ऋषभदेव जी का मेला मनाया जाता है, जो हिन्दू- जैन सद्भाव का मेला है।
5. जौहर मेला-
प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण एकादशी को चित्तौड़गढ़ दुर्ग (चित्तौड़गढ़) में जौहर मेला मनाया जाता है। राजस्थान में सर्वाधिक तीन जौहर इसी दुर्ग में हुये थे (राजस्थान का इतिहास संबंधी एकमात्र मेला है) ।
6. जसनाथ जी का मेला-
प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल सप्तमी को कतरियासर (बीकानेर) में जसनाथी सम्प्रदाय का मेला मनाया जाता है।
7. मेंहदीपुर बालाजी मेला-
प्रतिवर्ष चैत्र पूर्णिमा को मेहंदीपुर (दौसा) में मेंहदीपुर बालाजी का मेला मनाया जाता है।
8. सालासर बालाजी-
प्रतिवर्ष चैत्र पूर्णिमा को सालासर (चूरू) में सालासार बालाजी का मेला मनाया जाता है।
9. घोटिया अम्बा मेला-
प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को घोटिया (बांसवाड़ा) में घोटिया अम्बा का मेला मनाया जाता है, इसे आदिवासियों का दूसरा कुंभ कहते हैं।
10. पाबूजी का मेला-
प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को कोलू गाँव (फलौदी, जोधपुर) में पाबूजी का मेला मनाया जाता है। इस मेले में पाबूजी के भक्तों द्वारा केवल पुरुषों द्वारा अपनी अंगुली पर थाली को विद्युत गति से घुमाते हुए यहाँ थाली नृत्य किया जाता है जिसका मुख्य वाद्ययंत्र रावण हत्था होता है।
11. विक्रमादित्य मेला -
प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को उदयपुर में विक्रमादित्य का मेला मनाया जाता
12. कैला देवी का मेला-
प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से दशमी (चैत्र शुक्ल अष्टमी को मुख्य) तक कैलादेवी (करौली) में कैलादेवी का मेला मनाया जाता है, जिसे लक्खी मेला भी कहते हैं, जिसमें लांगुरिया नृत्य आकर्षण का केन्द्र होता है, जिसे मीणा पुरुष करते हैं।
13. श्री महावीर मेला -
प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी से बैशाख कृष्ण द्वितीया तक महावीर जी (करौली) में श्री महावीर जी का मेला मनाया जाता है, जो जैनियों का सबसे बड़ा मेला है। ध्यान रहे महावीर जी का पुराना नाम चांदनपुर थाह गम्भीर नदी के तट पर स्थित है।
14. गणगौर मेला-
प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल तृतीया को जयपुर में गणगौर मेला मनाया जाता है।
15. करणी माता का मेला-
प्रतिवर्ष चैत्र व आश्विन माह के स नवरात्रों में देशनोक (बीकानेर) में करणी माता का मेला मनाया जाता है।
16. बाणगंगा मेला -
प्रतिवर्ष वैशाख पूर्णिमा को विगट नगर (जयपुर) में बाणगंगा मेला मनाया जाता है।
17. धींगा गवर / बेंतमार मेला-
प्रतिवर्ष वैशास्त्र कृष्ण तृतीया को जोधपुर में धींगा गवर का मेला मनाया जाता है।
ध्यान रहे-धींगा गवर उदयपुर में भी मनाया जाता है।
18. नक्की झील का मेला-
प्रतिवर्ष वैशाख पूर्णिमा को माउण्ट आबू (सिरोही) में नक्की झील का मेला मनाया जाता है।
19. गौतमेश्वर मेला -
प्रतिवर्ष वैशाख पूर्णिमा को अरणोद (प्रतापगढ़) व सिरोही में गौतमेश्वर जी का मेला मनाया जाता है।
20. मातृकुण्डिया मेला-
प्रतिवर्ष वैशाख पूर्णिमा को राश्मी (चित्तौड़गढ़) के पास चन्द्रभागा नदी के किनारे मातृकुण्डिया का मेला मनाया जाता है, जिसे राजस्थान का हरिद्वार कहते हैं।
21. सीतामाता मेला-
प्रतिवर्ष ज्येष्ठ अमावस्या को प्रतापगढ़ में सीतामाता मेला मनाया जाता है।
22. सीताबाड़ी मेला-
प्रतिवर्ष ज्येष्ठ अमावस्या को केलवाडा (बारां) में सीताबाड़ी मेला मनाया जाता है। सीताबाड़ीलवकुश की छ जन्म स्थली के रूप में प्रसिद्ध है। यह हाड़ौती अंचल का सबसे बड़ा मेला है, जिसे सहरिया जनजाति का कुंभ/सहरियों का महातीर्थकुंभ कहते हैं। इसी कुंभ में सहरिया जनजाति के लोग अपना जीवनसाथी चुनते हैं।
ध्यान रहे- यदि उत्तर में बारां ना आये, तो हमारा उत्तर कोटा होगा।
23. गंगा दशहरा मेला-
प्रतिवर्ष ज्येष्ठ सुदी सप्तमी से बारस तक कामां (भरतपुर) में गंगा दशहरा मेला मनाया जाता है।
24. वीरपुरी मेला -
प्रतिवर्ष श्रावण के अंतिम सोमवार को मण्डौर (जोधपुर) में वीरपुरी मेला मनाया जाता है।
25. हरियाली अमावस्या का मेला / कल्पवृक्ष मेला-
प्रतिवर्ष श्रावण अमावस्या को मांगलियावास (अजमेर) में कल्पवृक्ष मेला मनाया जाता है।
26. चारभुजा जी का मेला-
प्रतिवर्ष श्रावण एकादशी से पूर्णिमा तक मेड़ता (नागौर) में चारभुजा जी का मेला मनाया जाता है। ध्यान रहे यह चारभुजा मंदिर मूलत: मीराँ बाई का मंदिर है।
27. तीज की सवारी एवं मेला-
प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ल तृतीया को जयपुर में तीज का मेला मनाया जाता है, इस दिन तीज की सवारी निकाली जाती है।
28. नागपंचमी का मेला-
प्रतिवर्ष श्रावण कृष्ण पंचमी मण्डौर (जोधपुर) में नागपंचमी का मेला मनाया जाता है।
29. साहबा का मेला (चुरू)-
प्रतिवर्ष श्रावण अमावस्या को गुरुद्वारा बुड्ढ़ा जोहड़, रायसिंह नगर (गंगानगर) में सिक्खों का मेला लगता है, जो राजस्थान में सिक्खों का सबसे बड़ा मेला है।
ध्यान रहे- यह राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध गुरुद्वारा है, जिसका निर्माण संत फतेहसिंह ने करवाया। इसे राजस्थान का स्वर्ण मंदिर व अमृतसर भी कहते हैं।
30. कजली तीज का मेला-
प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण तृतीया को बूँदी में कजली तीज का मेला मनाया जाता है।
31. गोगाजी का मेला-
प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण नवमी को गोगामेड़ी (नौहर, हनुमानगढ़) में गोगाजी का मेला मनाया जाता है, जो हिन्दू मुस्लिम सद्भाव का मेला कहलाता है। जबकि दूसरा मेला गोगाजी की औल्ड्री (सांचौर) में लगता है।
32. रामदेव मेला -
प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक रामदेवरा (रूणेचा, जैसलमेर) में रामदेवजी का मेला मनाया जाता है । रामदेवरा का प्राचीन नाम रूणेचा था, इस कारण इस मेले को रूणिचा का मेला भी कहते हैं। मारवाड़ का कुंभ कहलाने वाला यह साम्प्रदायिक सद्भाव एवं संख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा मेला है। इस मेले में आने से पहले जातरु बाबा रामदेव के गुरु बालीनाथ के दर्शन हेतु मसूरिया पहाड़ी (जोधपुर) जाते हैं। इस मेले की विशेषता तेरहताली नृत्य है।
33. गणेश जी का मेला-
प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को रणथम्भौर (सवाई माधोपुर) में गणेश जी का मेला मनाया जाता है। ध्यान रहे-खड़े गणेश जी का मंदिर-कोटा, नाचना गणेश जी का मंदिर- अलवर, बाजणा गणेश जी का मंदिर सिरोही, सिंह पर सवार गणेश जी का मंदिर बीकानेर, गढ़ गणेश / मोती डूंगरी गणेश जी का मंदिर जयपुर, बोहरा गणेश जी उदयपुर में है, तो रणत भँवर का गजानंद मंदिर / त्रिनेत्र गणेश मंदिर / लेटे हुए गणेश जी का मंदिर-सवाई माधोपुर में है।
34. हनुमान जी का मेला-
प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी व पंचमी को पांडुपोल (अलवर) में हनुमान जी का मेला मनाया जाता है।
35. फत्ताजी का मेला-
प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल नवमी को सांथू गांव (जालौर) फत्ताजी के विशाल मंदिर में मेला लगता है।
36. सांवलिया जी का मेला-
प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल एकादशी / जल-झूलनी एकादशी को मण्डफिया (चित्तौड़गढ़) में सांवलिया जी का मेला मनाया जाता है। इसे 'अफीम मंदिर' भी कहते हैं।
37. देवझूलनी मेला / चारभुजा जी का मेला-
प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल एकादशी को राजसमंद में चारभुजा जी का मेला मनाया जाता है।
38. रानी सती का मेला-
प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण अमावस्या को झुंझुनूं में रानी सती का मेला मनाया जाता है।
ध्यातव्य रहे-राजस्थान सरकार ने 1988 से सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाकर इसे आत्महत्या घोषित कर दिया है। अंतिम घटना 1987 में दिवाला गाँव (सीकर) की श्रीमती रूप कंवर शेखावत की है, जिसने अपने पति मालसिंह शेखावत की चिता पर कूद कर जान दे दी थी। अतः राजस्थान की अंतिम सती रूपंकवर थी।
39. डोल मेला -
प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल एकादशी को बारों में डोल मेला मनाया जाता है।
40. भर्तृहरि मेला-
प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल सप्तमी व अष्टमी को भर्तृहरि (अलवर) में भर्तृहरि का मेला मनाया जाता है। यह मत्स्य प्रदेश का सबसे बड़ा मेला है। भर्तृहरि अपनी रानी पिंगला के धोखे के कारण संन्यासी बन गये इससे पूर्व वो उज्जैन (मध्य प्रदेश) राज्य के शासक थे। ध्यान रहे संत भर्तृहरि की गुफा-पुष्कर (अजमेर), बघेरा (अजमेर) व माउंट आबू (सिरोही) में है।
41. तीर्थ राज मेला -
प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल षष्ठमी को मंचकुण्ड (धौलपुर) में तीर्थराज का मेला मनाया जाता है। ध्यान रहे सांभर (जयपुर) को तीर्थों की नानी / देवयानी, पुष्कर (अजमेर) को तीर्थराज या तीर्थों का मामा कहते हैं, तो मंचकुण्ड (धौलपुर) को तीर्थों का भांजा कहते हैं।
42. सवाई भोज का मेला-
प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को आसींद (भीलवाड़ा) में सवाई भोज का मेला मनाया जाता है।
43. जन्माष्टमी-
प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को नाथद्वारा (राजसमंद) में जन्माष्टमी का मेला मनाया जाता है।
44. भोजन थाली मेला-
प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल पंचमी को कामां (भरतपुर) में भोजन थाली का मेला मनाया जाता है। यहाँ की 84 कोसी परिक्रमा प्रसिद्ध है।
45. चुंघी तीर्थ मेला-
प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चुंघी तीर्थ (जैसलमेर) में चुंघी तीर्थ मेला मनाया जाता है।
46. खेजड़ली शहीद मेला-
प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल दशमी को खेजड़ली (जोधपुर) में खेजड़ली शहीद मेला मनाया जाता है। यह विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला है, जो अमृता देवी विश्नोई की स्मृति में लगता है। राजा अभयसिंह राठौड़ के काल में वृक्षों को बचाने के लिए 28 अगस्त, 1730 को खेजड़ली गाँव (जोधपुर) में 363 लोगों ने यहाँ जान दी थी।
47. तेजाजी का मेला-
प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल दशमी को परबतसर (नागौर) में तेजाजी का मेला मनाया जाता है, जो आय की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा मेला है। यह स्थान तेजाजी का मुख्य पूजा स्थल है।
48. डोल यात्रा (श्रीजी का भव्य मेला)-
प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल एकादशी को बारों में श्रीजी का मेला मनाया जाता है।
49. लोहार्गल का लक्खी मेला-
प्रतिवर्ष भाद्रपद अमावस्या को झुंझुनूं में लोहार्गल का लक्खी मेला मनाया जाता है। यहाँ के सूर्यकुण्ड व मालकेतु मंदिर प्रसिद्ध है तथा यहीं पर पाण्डवों के हथियार गल गये थे। यहाँ की 24 कोसी परिक्रमा प्रसिद्ध है।
50. दशहरा मेला-
प्रतिवर्ष अश्विन शुक्ल दशमी को कोटा में राष्ट्रीय दशहरा मेला मनाया जाता है, जिसकी शुरूआत 1579 में कोटा के महाराव माधो सिंह ने की थी, लेकिन इस मेले की प्रसिद्धि 1892 में कोटा के महाराव उम्मेद सिंह द्वितीय के काल में हुई। कोटा के इस दशहरे मेले को देखने सर्वाधिक पर्यटक पहुंचते है। इस दिन खेजड़ी वृक्ष व हथियारों की पूजा की जाती है तथा लीलटांस पक्षी के दर्शन शुभ माने जाते हैं और इस दिन राजपूतों में काले रंग की पगड़ी मदील पहनी जाती है। दशहरे पर लूणियावास (जयपुर) में स्थित खलकाणी माता का मेला लगता है, जो गधों के मेले के लिए भी प्रसिद्ध है।
ध्यातव्य रहे-किशनगढ़-रैनवाल (जयपुर) में स्थित पीपली गाँव में वैशाख शुक्ल दशमी को रावण दहन की परम्परा
है।
51. जगन्नाथ जी का मेला-
प्रतिवर्ष अश्विन शुक्ल अष्टमी से त्रयोदशी को अलवर में जगन्नाथ जी का मेला मनाया जाता है। इस मेले की रथ यात्रा सबसे प्रसिद्ध है। यह रथ यात्रा उड़ीसा के जगन्नाथपुरी की रथयात्रा की याद दिलाती है।
ध्यान रहे- उदयपुर के जगदीश मंदिर की भव्य रथ यात्रा भी पुरी की रथयात्रा के समान निकलती है।'
52. गरूड़ मेला -
प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल तृतीया को बंशीपहाड़पुर (भरतपुर) में गरूड़ मेला मनाया जाता है।
53. अन्नकूट मेला -
प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकम् को नाथद्वारा (राजसमंद) में अन्नकूट मेला मनाया जाता है।
54. पुष्कर मेला -
प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा (नवम्बर माह) तक पुष्कर (अजमेर) में पुष्कार मेला मनाया जाता है, जिसे मेरवाड़ा का कुंभ / अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मेला / सबसे रंगीन मेला / सर्वाधिक विदेशी पर्यटकों वाला मेला व सर्वाधिक ऊँट बिक्री वाला मेला कहते हैं, जो दीपदान महोत्सव के लिए भी प्रसिद्ध है। इस मेले पर वर्ष 2007 में 2 रु. का डाक टिकट जारी किया गया। ध्यान रहे- अजमेर के अशोक टांक को कैमल मैन के नाम से जाना जाता है।
55. कपिल मुनि का मेला-
प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को कोलायत (बीकानेर) में कपिल मुनि का मेला मनाया जाता है। यहाँ का दीपदान महोत्सव प्रसिद्ध है। कपिल मुनि का जन्म पुष्कर (अजमेर) के निकट हुआ था, जो सांख्य दर्शन के जनक कहलाते हैं। इनकी कर्मस्थली बीकानेर रही इसी कारण इनका मंदिर कोलायत झील के किनारे स्थित है। जहाँ प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा (नवम्बर) में मेला लगता है, जो जाँगल प्रदेश का सबसे बड़ा मेला व हिन्दू सिक्ख सद्भाव का मेला कहलाता है।
56. कपिल धारा का मेला-
प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को सहरिया क्षेत्र (बारां) में कपिल धारा का मेला मनाया जाता है।
57. नाकोड़ा जी का मेला-
प्रतिवर्ष पौष कृष्ण दशमी (जेल. प्रहरी 2017 को नाकोड़ा (बाड़मेर) में नाकोड़ा जी का मेला मनाया जाता है, जो जैन धर्म से संबंधित है।
58. सुईया मेला-
प्रतिवर्ष पौष अमावस्या (सोमवती अमावस्या) को चौहटन क्षेत्र (बाड़मेर) में सईया मेला मनाया जाता है। चौहटन गाँव गोंद प्राप्ति के लिए प्रसिद्ध है। यह मेला चार वर्ष में एक बार लगता है, अत: इसको अर्द्धकुम्भ की मान्यता है।
59. चौथ माता का मेला-
प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को चौथ का बरवाड़ा (स.माधोपुर) में चौथ माता का मेला मनाया जाता है।
60. बसंत मेला-
प्रतिवर्ष मार्गशीष कृष्ण तृतीया को सिणधरी (बाड़मेर) में बसंत मेला मनाया जाता है।
61. मानगढ़ धाम मेला-
प्रतिवर्ष मार्गशीष पूर्णिमा को मानगढ़ धाम (बांसवाड़ा) में मानगढ़ धाम मेला मनाया जाता है।
62. बेणेश्वर मेला-
प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा नेवटापुरा/ नवाटापुरा (आसपुरा तह., डूंगरपुर) में सोम-माही-जाखम के त्रिवेणी संगम पर बेणेश्वर मेला मनाया जाता है। (बेणेश्वर का अर्थ-डेल्टा की मल्लिका) यह विश्व का एकमात्र शिवलिंग है, जो पाँच तरफ से खण्डित है, फिर भी उसकी पूजा की जाती है। इसे भीलों का कुंभ बागड़ का कुंभ / आदिवासियों का कुंभ बागड़ का पुष्कर / मेवाड़ प्रदेश का सबसे बड़ा मेला व मृत आत्माओं का मुक्ति स्थल भी कहते हैं। ध्यान रहे- यहाँ ओदीच्य ब्राह्मणों की गद्दी है।
63. शिवरात्रि मेला-
प्रतिवर्ष फाल्गुन कृष्ण तेरस को शिवाड़ (स.माधोपुर) में घुश्मेश्वर महादेव का मेला शिवरात्रि को लगता है । ध्यान रहें - पिपलूद (हल्देश्वर पहाड़ी, बाड़मेर) में हल्देश्वर महादेव का मेला भरता है, जिसे मारवाड़ का लघु माउण्ट कहते हैं।
64. एकलिंग जी-
प्रतिवर्ष फाल्गुन कृष्ण तेरस को कैलाशपुरी (उदयपुर) में एकलिंग जी का मेला मनाया जाता है।
65. संगम मेला-
प्रतिवर्ष फाल्गुन कृष्ण तेरस को त्रिवेणी संगम,मेनाल (भीलवाड़ा) में संगम मेला मनाया जाता है।
66. चनणी चेरी मेला-
प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ल सप्तमी को देशनोक (बीकानेर) में चनणी चेरी का मेला मनाया जाता है।
67. तिलस्वां महादेव मेला -
प्रतिवर्ष फाल्गुन पूर्णिमा को तिलस्वां मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) में तिलस्वां महादेव का मेला मनाया जाता है।
68. डिग्गी कल्याण जी का मेला-
प्रतिवर्ष सम्पूर्ण श्रावण माह एवं भाद्रपद शुक्ल एकादशी को डिग्गी, मालपुरा (टोंक) में डिग्गी कल्याण जी का मेला मनाया जाता है। इन्हें लोगों के रोगों का निदान करने के कारण 'कलह पीर / जिंदा पीर भी कहते हैं।
69. जाम्भेश्वर मेला-
प्रतिवर्ष फाल्गुन व आश्विन की अमावस्या (वर्ष में दो बार) को मुकाम-तालवा (नौखा, बीकानेर) में जाम्भेश्वर जी का मेला मनाया जाता है।
70. खाटू श्यामजी का मेला-
प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ल एकादशी व द्वादशी को खाटू गाँव, दातारामगढ़ तह. (सीकर) में खाटू श्याम जी का मेला मनाया जाता है। खाटू श्याम जी, भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र महाबली बर्बरीक थे। इनके मंदिर में इनके शीश की पूजा की जाती है।
71. डाडा पम्पाराम का मेला-
प्रतिवर्ष फाल्गुन माह में 7 दिन तक विजय नगर (गंगानगर) में डाडा पम्पाराम को मेला मनाया जाता है।
72. पीपलोद का क्रिसमस मेला-
प्रतिवर्ष 25 दिसम्बर को बारों में पीपलोद का क्रिसमस मेला मनाया जाता है।
73. मनखारो मेला-
प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल तृतीया को गरासिया जाति के द्वारा आबू रोड़ (सिरोही) में मनाया जाता है जिसे सियावा का गौर मेला भी कहते हैं।
राज्य के प्रमुख मुस्लिम मेले/उर्स
1.ख्वाजा साहब का उर्स- सूफी सिलसिले को शुरू करने वाले ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (ख्वाजा साहब) का उर्स प्रतिवर्ष अजमेर में 1-6 रज्जब तक मनाते हैं।
ध्यान रहे- इस समारोह की पूर्ण रस्म 9 रजब को समाप्त होती है। ख्वाजा का उसे भारत का सबसे बड़ा एवं दुनिया का दूसरा बड़ा उर्स (मेला) है। राजस्थान में कव्वाली परम्परा को शुरू करने का श्रेय इन्हें ही दिया जाता है। इन्होंने गुजंल असरार व अनिसुल अरवाह पुस्तक लिखी। इन्होंने अपने उपदेश ब्रजभाषा में दिये। इनके बड़े बेटे का नाम फखरुद्दीन चिश्ती था, जिनकी दरगाह-सरवाड़ (अजमेर) में है, तो ख्वाजा साहब के गुरु का नाम हजरत शेख उस्मान हारुनी था।
ध्यात्वय रहे- अजमेर स्थित अलाउद्दीन खान का मकबरा सोलाखम्बा के नाम से भी जाना जाता है।
2. मीठेशाह का उर्स- प्रतिवर्ष ज्येष्ठ शुक्ल एकम् को गागरोन (झालावाड़) में मीठेशाह का उर्स भरता है।
3. तारकीन का उर्स- ख्वाजा साहब का परम शिष्य हमीमुद्दीन चिश्ती था, जिनकी दरगाह नागौर में है। हमीमुद्दीन चिश्ती को सुल्तान ए-तारकीन व सन्यासियों का बादशाह की उपाधि ख्वाजा साहब (गरीब नवाज) ने दी। यह राज्य का दूसरा सबसे बड़ा उर्स है, जिनके साथ ही बड़े पीर का उर्स भी लगता है।
ध्यात्वय रहे-अतारकिन-का-दरवाजा राजस्थान के नागौर जिले में स्थित है।
4. शहीद फखरुद्दीन (बोहरा) उर्स / गलियाकोट का उर्स- गलियाकोट (इंगरपुर) में संत फखरुद्दीन की दरगाह (मजार-ए फखरी) है, जहाँ प्रतिवर्ष मुहर्रम की 27वीं तारीख को शहीद फखरुद्दीन का उसे लगता है। यह उर्स दाऊदी बोहरा सम्प्रदाय का सबसे बड़ा उर्स है, जहाँ सर्वाधिक विदेशी जायरीन आते हैं।
5. पंजाबशाह का उर्स- प्रतिवर्ष ढाई दिन का झोंपड़ा (अजमेर) में पंजाबशाह का उर्स भरता है।
6. नरहड़ के पीर का उर्स- प्रतिवर्ष कृष्ण जन्माष्टमी को झुंझुन् में नरहड़ के पीर का उर्स लगता है, जो साम्प्रदायिक सद्भाव का मेला है। ध्यान रहे इन्हें बागड़ का धनी / शक्कर पीर बाबा के नाम से भी जानते हैं।
7. चोटीला पीर का उर्स- प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा व द्वितीया को पाली में चोटीला पीर का उर्स लगता है। यहाँ पीर दुल्लेशाह की दरगाह स्थित है। ध्यान रहे-चोटीला पीर के उर्स का आयोजन हिन्दू रिवाज से एवं हिन्दू तिथियों से होता है।
8. मलिक शाह पीर का उर्स-अजमेर के उर्स के बाद जालौर दुर्ग में मलिक शाह पीर का उर्स लगता है, इस उर्स में राम-कृष्ण के भजन गाये जाते हैं।
0 Comments: