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पृथ्वी की आंतरिक संरचना

पृथ्वी की आंतरिक संरचना

पृथ्वी की आंतरिक संरचना

पृथ्वी की आन्तरिक संरचना आज भी विद्वानों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है तथा इसके रहस्य के विषय में हमारा ज्ञान अपर्याप्त है। पृथ्वी के आन्तरिक भाग की वास्तविक स्थिति तथा उसकी बनावट के विषय में सही ज्ञान प्राप्त करना असंभव नहीं तो कठिन कार्य अवश्य है, क्योंकि पृथ्वी का आन्तरिक भाग मानव के लिए दृश्य नहीं है। यद्यपि पृथ्वी का आन्तरिक भाग भूगोल के अध्ययन के क्षेत्र से बाहर है तथापि पृथ्वी की सतह पर  होने वाले परिवर्तनों (जो पृथ्वी की आन्तरिक गहराइयों में कार्यरत बलों से संबद्ध है) की प्रकृति को समझने के लिए पृथ्वी के आन्तरिक भाग के बारे में जानना अनिवार्य है। 

पृथ्वी के आन्तरिक भाग की जानकारी मुख्यतः अप्रत्यक्ष स्रोतों पर आधारित है, क्योंकि पृथ्वी की संरचना के आन्तरिक स्तर तक पहुँचना दूर तक संभव नहीं है, क्योंकि उसे हम अवलोकन कर ही नहीं सकते। 

खनिजों को निकालने के लिए मानव ने अनेक गहरे खान खोदे हैं, जिनमें वे प्रवेश करते रहे हैं परन्तु इन खानों से प्राप्त पृथ्वी की संरचना का ज्ञान 5-6 किलोमीटर तक ही संभव हो सका है, जबकि धरातल से पृथ्वी के केन्द्र की दूरी 6371 किमी है। इस प्रकार खानों का आधार पृथ्वी की गहराई की तुलना में नगण्य है। 

कुछ प्रमाण धरातल के नीचे आदिकाल में निक्षेपित आग्नेय चट्टानों से भी प्राप्त होता है जो लंबे काल से चलते रहने वाले अपरदन की क्रिया से धरातल पर उभर आये हैं। परन्तु यह भी 10-15 किलोमीटर से अधिक गहराई की अवस्थाओं का ज्ञान प्रदान नहीं करते। भू-पृष्ठ पर जो ज्यालामुखीय उद्गार होता है। 

वह भी हमें लगभग 60 किलोमीटर से अधिक गहराई की अवस्था का ज्ञान नहीं देते। फिर भी पृथ्वी की आंतरिक अवस्था तथा संरचना के विषय में अत्यंत जटिल विधियों द्वारा तथा अत्यंत सूक्ष्म वैज्ञानिक यंत्रों द्वारा भू वैज्ञानिकों, गणितज्ञों तथा अन्य क्षेत्रों के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है तथा आज भी अनुसंधान में जुटे हुए हैं। 

इस अनुसंधान में 'भूकम्प विज्ञान' (Seismology) से कुछ विश्वसनीय बातें अवश्य ज्ञात हो जाती हैं। पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के विषय में जानकारी देने वाले साधनों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

पृथ्वी के आन्तरिक भाग से संबद्ध प्रमाण

अप्राकृतिक साधन

Artificial Sources

पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित सिद्धान्तों के साक्ष्य

 

प्राकृतिक साधन Natural Sources

 

घनत्व Density

 

-

ज्वालामुखीय -उद्गार Volcanic Eruption

 

दबाव Pressure

 

-

भूकम्प विज्ञान Seismo logy

 

तापक्रम Temperature

 

-

-

 

1. अप्राकृतिक साधन Artificial Sources

(A) घनत्व : पृथ्वी का औसत घनत्व 5.5 है जबकि भू-पर्पटी (crust) का घनत्व लगभग 3.0 है। इससे स्पष्ट है कि आतरिक भागों में घनत्व की अधिकता होगी। घनत्व संबंधी विभिन्न प्रमाणों से यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि पृथ्वी के कोड (core) का घनत्व ऊपरी चट्टानों के घनत्व से कई गुना अधिक है तथा ये पदार्थ समान आयतन के जल से कम से कम 11-12 गुना अधिक भारी है। वास्तव में धरातल से हम जैसे जैसे केन्द्र की ओर जाते हैं पदार्थों का घनत्व बराबर बढ़ता जाता है। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि पृथ्वी का केन्द्रीय भाग (core) लोहे का बना हुआ है। हम जानते हैं कि लोहे का घनत्व 8 है। परन्तु पृथ्वी के केन्द्र में 2.3 मिलियन वायुमंडलीय दाब के कारण लोहे का आयतन बढ़ जायेगा तथा घनत्व 8 से बढ़कर 11 या 12 हो जायेगा।

(B) दबाव : 

क्रोड (core) के अधिक घनत्व के संबंध में चट्टानों के भार व दबाव का संदर्भ लिया जा सकता है। परन्तु, दबाव बढ़ने से यद्यपि घनत्व बढ़ता है किन्तु प्रत्येक चट्टान की है अपनी एक सीमा है, जिससे अधिक इसका घनत्व नहीं हो सकता है, चाहे दबाव कितना ही अधिक क्यों न कर दिया जाए। पृथ्वी के आन्तरिक भाग में दबाव को नापने के लिए उसी इकाई को प्रयोग में लाया जाता है जिस इकाई का प्रयोग वायुमंडलीय दाब मापने के लिए किया जाता है। एक वायुमंडलीय इकाई (Atmospheric unit) प्रति वर्ग इंच लगभग 14.7 पौंड के बराबर है। लगभग 1500 मील की गहराई पर यह दबाव 1 मिलियन वायुमंडल (1 Million Atmosphere) हो सकता है। इस तथ्य के आधार पर पृथ्वी के केन्द्र में लगभग यह दबाव 3.5 मिलियन वायुमंडल होगा। यहाँ पर पदार्थों का कोई भार (Weight) नहीं है, परन्तु यहाँ पर पूरी पृथ्वी के द्रव्यमान (Mass) का भार है।

(C) तापमान : 

पृथ्वी के आन्तरिक भाग से अत्यधिक गर्म द्रव पदार्थ उत्क्षेपित करने वाले सक्रिय ज्वालामुखी उद्गारों तथा गर्म जल के स्रोतों व फव्वारों के अस्तित्व से यह संकेत मिलता है कि पृथ्वी का आन्तरिक भाग अत्यंत गर्म है। पृथ्वी की सतह से नीचे सामान्य रूप से प्रत्येक 32 मीटर की गहराई पर तापमान में 1°C की वृद्धि होती है परन्तु बढ़ती गहराई के साथ तापमान की वृद्धि दर में भी गिरावट आती है। 

प्रथम 100 किमी की गहराई में प्रत्येक किमी 12°C की वृद्धि होती है। उसके बाद के 300 किमी की गहराई में प्रत्येक किमी पर 2° C एवं उसके पश्चात् प्रत्येक किमी की गहराई पर 1°C की वृद्धि होती है। इस गणना के अनुसार पृथ्वी के केन्द्र का तापमान लगभग 2000°C तक होने की संभावना है। 

यह उच्च तापमान आंतरिक बलों की क्रियाओं, रेडियोधर्मी पदार्थों के स्वतः विखंडन, रासायनिक प्रतिक्रियाओं आदि में मुख्य प्रेरक की भूमिका निभाता है। पृथ्वी के आन्तरिक भाग से ऊष्मा का प्रवाह बाहर की ओर होता रहता है जो तापीय संवहन तरंगों के रूप में होता है। 

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के आगमन से यह और भी स्पष्ट हो गया है।  यद्यपि आदर्श में, उच्च तापमान के कारण पृथ्वी का सबसे आंतरिक भाग तरल या गैसीय अवस्था में होना चाहिए, किन्तु गहराई के साथ साथ दाब के बढ़ने के कारण केन्द्रीय भाग एक ठोस पिण्ड है। केन्द्रीय भाग को ढकने वाली परत अर्द्धठोस या प्लास्टिक अवस्था में होती

(D) पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित सिद्धान्तों के साक्ष्य : 

पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित ग्रहाणु परिकल्पना जहाँ पृथ्वी के अंतरतम (क्रोड) को ठोस मानती है वहीं ज्वारीय परिकल्पना एवं वायव्य नीहारिका परिकल्पना में पृथ्वी के अन्तरतम को तरल माना गया है। इस प्रकार पृथ्वी के आन्तरिक भाग के संबंध में दो ही संभावनाएँ बनती हैं, या तो यह ठोस हो सकती है या तरल ।

2. प्राकृतिक साधन :

(A) ज्वालामुखी क्रिया : यह सर्वविदित है कि जब पृथ्वी के किसी भाग में ज्वालामुखी का उद्गार होता है तो पृथ्वी के आंतरिक भाग से गर्म एवं तरल लावा बड़ी मात्रा में निकलता है । इससे यह स्पष्ट होता है कि पृथ्वी की गहराई में कहीं-न-कहीं ऐसी परत अवश्य है जो तरल या अर्द्ध-तरल अवस्था में है । यद्यपि ज्वालामुखी के उद्गार से भी पृथ्वी की आंतरिक बनावट के संबंध में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिल पाती ।

(B) भूकम्प विज्ञान के साक्ष्य : 

इसमें भूकंपीय लहरों का ‘सिस्मोग्राफ यंत्र' (Seismograph) द्वारा अंकन करके अध्ययन किया जाता है। यह ऐसा प्रत्यक्ष साधन है जिससे पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के विषय में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध होती है और उसके बारे में स्पष्ट अनुमान लगा पाना संभव हुआ है                                 ‌‌               

पृथ्वी की विभिन्न संस्तरों में भूकंपीय लहरों का व्यवहार, पृथ्वी की आन्तरिक संरचना और संघटन के संबंध में अत्यधिक प्रमाण प्रस्तुत करता है । भूकम्प की घटना के समय विभिन्न प्रकार की उत्पन्न लहरों को सामान्यतया तीन व्यापक वर्गों में विभाजित किया जाता है—

  • प्राथमिक लहरें (Primary or 'P' waves)
  • द्वितीयक / गौण/आड़ी लहरें (Transverse, Secondary or 'S' waves)
  • धरातलीय लहरें (Surface waves or 'L' waves)

1. प्राथमिक लहरें ('P' waves) : 

यह लहर ध्वनि तरंगों के अनुरूप होती है। इससे पदार्थ के कण गति की दिशा में ही प्रदोलित होते हैं । इसकी गति सभी तरंगों की गति से तेज होती है। इसकी गति घने एवं ठोस चट्टानों में और अधिक तीव्र हो जाती है। इसके आने पर धरातल ऊपर-नीचे होने लगता है। अंग्रेजी में इसे 'P' waves के नाम से पुकारा जाता है।

2. द्वितीयक / गौण/आड़ी लहरें (Transverse, Secondary or 'S' waves): 

ये लहरें जल तरंगों अथवा प्रकाश तरंगों से मिलती-जुलती हैं। इसमें पदार्थ के कणों की गति लहर की दिशा के प्रति समकोण बनाते हुए होती है। इसी कारण इसे आड़ी (Transverse) लहरें कहते हैं। अंग्रेजी में इसे 'S' waves कहा जाता है। यद्यपि '5' waves पृथ्वी के भीतर अधिक गहराई तक प्रवेश कर जाती हैं, पर द्रव पदार्थों में प्रायः लुप्त हो जाती हैं।

3. धरातलीय लहरें (Surface waves or 'L' waves)

धरातलीय लहरें धरातल के ऊपर तक ही सीमित रहती हैं। भू-गर्भ में ये प्रवेश नहीं कर पाती। इसके आने पर लंबे समय तक प्रदोलन होता रहता है। भूकम्प की इस लहर को अंग्रेजी में 'L' waves कहा जाता है। साधारणतः भूकम्प की लहरें भूकम्प केन्द्र से चलकर अधिकेन्द्र (Epicentre) पर पहुँचती है और वहाँ से सभी दिशाओं में चलती है। 

पृथ्वी के विभिन्न भागों में घनत्व में अंतर के कारण P-S तरंगें जो धरातल के नीचे से होती हुई पुनः धरातल पर पहुँचती हैं। P-S तरंगें ज्यों-ज्यों अधिकेन्द्र से दूर जाती हैं, स्पष्ट होती जाती हैं तथा भूकम्पमापी केन्द्र (Seismological Station) में दोनों स्पष्ट रूप से अंकित हो जाती हैं। पर यह पाया गया है कि भूकम्प अधिकेन्द्र से 110° से 120° की दूरी पर 'P' तरंग तो अंकित होती है, परन्तु 'S' तरंग लोप हो जाती है। 

इससे विद्वानों ने निष्कर्ष निकाला है कि 'S' तरंग का लोप होना यह स्पष्ट करता है कि पृथ्वी का आंतरिक भाग तरल अवस्था में है क्योंकि '5' तरंगें तरल माध्यम (Liquid Medium) से नहीं गुजर सकती हैं। अर्थात् पृथ्वी का ऊपरी भाग जहाँ ठोस है वहीं उसका आंतरिक भाग तरल अवस्था में है। 110-120° के बीच जहाँ 'S' तरंगें रिकार्ड नहीं होती, उसे छाया प्रदेश' (Shasdow Zone) कहा गया है।

भूकम्पीय लहरों की गति में भिन्नता के आधार पर पृथ्वी की आंतरिक संरचना को जानने का प्रयास किया गया है। अंतर्राष्ट्रीय भूमिति और भू-भौतिक संघ' (International Union of Geodesy and Geo-Physics) के शोध इस दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्व रखते हैं। इसने भूकपीय लहरों की गति में भिन्नता के आधार पर पृथ्वी के आन्तरिक भाग को तीन वृहद् मंडलों (Zone ) — (i) भू-पर्पटी (Crust), (ii) मैटल (Mantle) और (iii) क्रोड (Core) में विभक्त किया है।

(I)भू-पर्पटी (Crust): 

अंतर्राष्ट्रीय भूमिति और भू-भौतिक संघ (International Union of Geodesy and Geo Physics-IUGG) ने भू-पर्पटी की औसत मोटाई 30 किमी मानी है यद्यपि अन्य स्रोतों के अनुसार भू-पर्पटी की मोटाई 100 किमी बतायी गयी है। IUGG के अनुसार क्रस्ट (भू-पर्पटी) के ऊपरी भाग में लहर की गति 6.1 किमी प्रति सेकेण्ड तथा निचले भाग में 6.9 किमी प्रति सेकेण्ड है। ऊपरी क्रस्ट का औसत घनत्व 2.8 एवं निचले क्रस्ट का 3.0 है। 

घनत्व में यह अंतर दबाव के कारण माना जाता है। ऊपरी क्रस्ट एवं निचले क्रस्ट के बीच घनत्व संबंधी यह असंबद्धता कोनराड असंबद्धता कहलाती है। क्रस्ट का निर्माण मुख्यतः सिलिका और अल्युमिनियम से हुआ है । अतः इसे SiAl परत भी कहा जाता है।

(ii) मैटल (Mantle): 

भू-पर्पटी (Crust) के निचले आधार पर भूकंपीय लहरों की गति में अचानक वृद्धि होती है और यह बढ़कर 7.9 से 8.1 किमी प्रति सेकेण्ड तक हो जाती है। इससे निचले क्रस्ट तथा ऊपरी मैंटल के मध्य एक असंबद्धता (Discontinuity) का निर्माण होता है, जो चट्टानों के घनत्व में परिवर्तन को दर्शाता है।

इस असंबद्धता की खोज 1909 ई० में रूसी वैज्ञानिक ए. मोहोरोविकिक (A. Mohorovicic) ने की थी। अतः इस असंबद्धता का नामकरण इनके सम्मान में मोहो- असंबद्धता (Moho- Discontinuity) रखा गया है। मोहो- असंबद्धता से लगभग 2900 किमी की गहराई तक मैंटल का विस्तार है। 

इसके आयतन ( Volume) का पृथ्वी के कुल आयतन का लगभग 83% एवं द्रव्यमान (Mass) लगभग 68% है । मैंटल का निर्माण मुख्यतः सिलिका और मैग्नीशियम से हुआ है । अतः इसे SiMa परत भी कहा जाता है। मैंटल को IUGG ने भूकंपीय लहरों की गति के आधार पर पुनः तीन भागों में बाँटा है। ये हैं-

  • मोहो- असंबद्धता से 200 किमी;
  • 200 किमी से 700 किमी (ऊपरी मैंटल); (c) 700 किमी से 2900 किमी (निचली मैंटल) ।

ऊपरी मैंटल में 100 से 200 किलोमीटर की गहराई में भूकंपीय उहरों की गति मंद पड़ जाती है एवं यह 7.8 किमी प्रति सेकेण्ड मिलती है। अतः इस भाग को निम्न गति मंडल' (Zone of Low Velocity) भी कहा जाता है। ऊपरी मैंटल एवं निचले मैंटल के बीच घनत्व संबंधी यह असंबद्धता 'रेपेटी असंबद्धता' (Repeti Discontinuity) कहलाती है।

सियाल और सीमा में भूकंपीय लहरों का वेग

 

सियाल

सीमा

मोटाई

 

10-12 किमी

15-20 किमी

घनत्व

2.7

2.95

भूकंपीय लहरों का वेग

 

 P लहर 6.2 किमी/सेकेण्ड

S लहर 3.6 किमी/सेकेण्ड

6.5 किमी/सेकेण्ड

3.74 किमी/सेकेण्ड

संघटन

ग्रेनाइट

बेसाल्ट

(iii) क्रोड (Core): 

निचले मैंटल के आधार पर 'P' तरंगों की गति में अचानक परिवर्तन आता और यह बढ़कर 13.6 में किमी प्रति सेकेण्ड हो जाती है। यह चट्टानों के घनत्व एकाएक परिवर्तन को दर्शाता है, जिससे एक प्रकार की असंबद्धता उत्पन्न होती है। इस असंबद्धता को 'गुटेनबर्ग विसार्ट-असंबद्धता' भी कहते हैं। गुटेनबर्ग - विसार्ट-असंबद्धता से लेकर 6371 किमी की गहराई तक के भाग को क्रोड (Core) कहा जाता है। इसे भी दो भागों में विभक्त किया जाता है-

  • बाह्य क्रोड (Outer Core)-2900 से 5150 किमी;
  • आन्तरिक क्रोड (Inner Core ) - 5150 किमी से 6371 किमी

बाह्य क्रोड तथा आन्तरिक क्रोड के बीच पायी जाने वाली घनत्व संबंधी असंबद्धता 'लैहमेन असंबद्धता' कहलाती है क्रोड में सबसे ऊपरी भाग में घनत्व 10 होता है जो अंदर जाने पर 12 से 13 तथा सबसे आंतरिक भागों में 13.6 हो जाता है। 

इस प्रकार क्रोड का घनत्व मैंटल के घनत्व के दो गुना से भी अधिक होता है। बाह्य अंतरंग में जहाँ घनत्व सर्वाधिक है, तुलनात्मक दृष्टि से अधिक तरल होने के कारण 'P' तरंगों की गति 11.23 किमी/से. रह जाती है। यद्यपि अत्यधिक तापमान के कारण क्रोड को पिघली हुई अवस्था में रहना चाहिए, किन्तु अत्यधिक दबाव के कारण यह अर्द्धतरल या प्लास्टिक अवस्था में रहता है । 

क्रोड का आयतन पूरी पृथ्वी का मात्र 16% है, परन्तु इसका द्रव्यमान पृथ्वी के कुल द्रव्यमान का लगभग 32% है क्रोड के आन्तरिक भाग में यद्यपि सल्फाइड व कार्बाइड की भी कुछ मात्रा रहती है, परन्तु इसका निर्माण मुख्यरूपेण निकेल और लोहा से हुआ है । अतः इसे NiFe परत भी कहते हैं ।

सारणी- भूकंपीय लहरें (वेग किमी/सेकेण्ड में)

P लहरों का वेग

 

6.5

 

16.5

 

S लहरों का वेग

 

3.74

 

7.4

घनत्व

 

2.95

5.7

ऊपर

 

 

 

असंबद्धता

 

मोहो- असंबद्धता

 

गुटेनबर्ग असंबद्धता

 

नीचे

 

 

 

Pलहरों का वेग

 

3.76

8.1

S लहरों का वेग

 

4.36

पारगत नहीं

 

घनत्व

 

3.3-3.5

9.5

स्वेस के अनुसार पृथ्वी की आन्तरिक संरचना Internal Structure of the Earth According to Suess आस्ट्रिया के भू-वैज्ञानिक स्वेस के अनुसार, धरातल पर अवसादी चट्टानों के नीचे तीन परतें हैं। उनका यह मत पदार्थों की रासायनिक संरचना पर आधारित है। उनके अनुसार ये परतें हैं

  1. ऊपरी परत / सियाल (SiAl)
  2. मध्यवर्ती परत / सीमा (SiMa)
  3. केन्द्रीय पिण्ड /नीफे (NiFe)

(i) ऊपरी परत / सियाल (SiAl) : 

स्थल भाग के अवसादी चट्टानों के ठीक नीचे एक ऐसी चट्टानी परत है, जो ग्रेनाइट से बहुत मिलती-जुलती है। पृथ्वी के स्थल-खंडों अर्थात् महाद्वीपों का निर्माण इन्हीं चट्टानों द्वारा हुआ है। 

इस परत का नाम स्वेस महोदय ने 'सियाल' (SiAl) दिया है। 'सियाल' शब्द सिलिका (Silica) के प्रथम दो अक्षर 'Si' तथा एल्युमिनियम ( Aluminium) के प्रथम दो अक्षर 'Al' को मिलाकर बना है । 

स्वेस महोदय के अनुसार चूँकि ऊपरी परत में सिलिकॉन और एल्युमिनियम दो तत्वों की प्रधानता है, अतः इस परत को Si + Al = SiAl कहा गया। इस परत का घनत्व 2.75 से 2.90 तक है।

(ii) मध्यवर्ती परत/सीमा (SiMa): 

सियाल के नीचे भारी चट्टानों की एक मोटी परत है, जिसमें अधिक घनत्व वाले चट्टान जैसे बेसाल्ट और गैब्रो की प्रधानता है इस परत का नाम स्वेस महोदय ने 'सीमा' (SiMa) दिया है । 'SiMa' शब्द सिलिका तथा मैग्नेशियम (Silica + Magnesium) के प्रथम दो अक्षरों को मिलाकर (Si + Ma = SiMa) बनाया गया है । 

इस परत के पदार्थों का घनत्व 2.90 से 4.75 तक है स्वेस महोदय के मतानुसार सीमा की मोटाई सियाल से कई गुना अधिक है।

(iii) केन्द्रीय पिण्ड /नीफे (NiFe) 

स्वेस महोदय के मतानुसार पृथ्वी की तीसरी परत भू-गर्भ का केन्द्रीय भाग है यह भाग घने तथा भारी पदार्थों द्वारा निर्मित है। इस भाग में मुख्यतः निकेल (Nickel) तथा लोहा (Fe) जैसे भारी तत्वों की प्रधानता है। 

अतः इस भाग को 'नीफे' (Ni + Fe = NiFe) कहा जाता है। 'नीफे' का औसत घनत्व 4.75 से 12 के बीच है।

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