Rajasthan ki Vanaspati - राजस्थान की वनस्पति एवं वन सम्पदा
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Rajasthan ki Vanaspati - राजस्थान की वनस्पति एवं वन सम्पदा
(1) वन नीतियां ( 2 ) वन गणना (3) वनों का वर्गीकरण (4) प्रमुख वन सम्पदा (5) वानिकी कार्यक्रम (6) वानिकी व पर्यावरण संबंधी पुरस्कार (7) प्रमुख अधिनियम एवं प्रमुख दिवस
(1) वन नीतियां :-
राष्ट्रीय स्तर पर:-
- 1894 पहली वन नीति
- 1952 स्वतंत्र भारत की पहली वन नीति
- 1988-नवीनतम वननीति
नवीनतम वननीति के अनुसार वनों का लक्ष्य
भौगोलिक क्षेत्र |
33 प्रतिशत |
पर्वत |
60 प्रतिशत |
मैदान |
20 प्रतिशत |
नोट:-
- राजस्थान राज्य की वन नीति- 18 फरवरी, 2010
- राज्य वननीति के अनुसार कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 20 प्रतिशत भाग पर वन होने चाहिए
- राज्य की ईको टूरिज्म पॉलिसी 2020 (प्रथम-4 फरवरी, 2010)
(2) वन गणना-
- कार्य- वन सर्वेक्षण संस्थान देहरादून (उत्तराखण्ड)
- समय- प्रति दो वर्ष में एक बार की जाती है।
- नवीनतम वन गणना- 16वीं (2019)
- ISFR (Indian State Forest Report)-
16th के अनुसार राजस्थान में कुल वन क्षेत्र- |
16वीं वन रिपोर्ट के अनुसार राज्य में सर्वाधिक वन विस्तार:-
सर्वाधिक वन-
क्षेत्रफल के अनुसार |
प्रतिशत अनुसार |
1. उदयपुर-
2757 KM 2 |
1. उदयपुर- 23.51% |
2. अलवर-1197 KM² |
2. प्रतापगढ़- 23.33% |
3. प्रतापगढ़- 1038 KM2 |
3. सिरोही- 17.76% |
4.बारां 1011 KM² |
4. करौली-15.75% |
16वीं वन रिपोर्ट के अनुसार राज्य में न्यूनतम वन विस्तार-
न्यूनतम वन-
क्षेत्रफल के अनुसार |
प्रतिशत अनुसार |
1. चुरू 82 KM² |
1.. जोधपुर- 0.47% |
2. हनुमानगढ़ - 90 KM² |
2.. चुरू-0.59% |
3. जोधपुर 108 KM² |
3. नागौर 0.83% |
4. श्री गंगानगर- 113KM² |
4. जैसलमेर 0.85% |
नवीनतम वन गणना के अनुसार वनों में सर्वाधिक बढ़ोतरी / कमी-
सर्वाधिक बढ़ोतरी |
सर्वाधिक कमी |
1. बाडमेर |
1. उदयपुर |
2. जैसलमेर |
2. प्रतापगढ़ |
3. डूंगरपुर |
3. झालावाड |
नोट:- राजस्थान में कुल अभिलेखित वन (Recorded Forest) -
प्रतिशत |
क्षेत्रफल |
9.60% |
32862.5KM² |
(3) वनों का वर्गीकरण:-
वनों का वर्गीकरण-
(a) कानूनी / प्रशासनिक वर्गीकरण |
(b) भौगोलिक वर्गीकरण |
(a) कानूनी / प्रशासनिक वर्गीकरण :- राज्य वन अधिनियम 1953 के तहत प्रशासनिक आधार पर वनों को 3 भागों में बांटा गया है।
कानूनी / प्रशासनिक वर्गीकरण
(i) आरक्षित वन (Reserved Forest) |
37.05% |
(ii) रक्षित / संरक्षित वन (Protected Forest ) |
56.43% |
(iii) अवर्गीकृत वन (Unclassified Forest ) |
6.52% |
(i) आरक्षित वन (Reserved Forest) :-
1.इन चनों में लकड़ी काटना, पशुचारण एवं आखेट / शिकार पूर्णत: प्रतिबन्धित होता है।
2.इन वनों का सर्वाधिक विस्तार-उदयपुर
(ii) रक्षित / संरक्षित वन (Protected Forest)
1.इन वनों में लकड़ी काटने एवं पशुचारण पर सीमित छूट
होती है।
2.इन वनों का सर्वाधिक विस्तार- बारां
(iii) अवर्गीकृत वन (Unclasssied Forest)
:-
1.इन वनों में लकड़ी काटने एवं पशुचारण पर कोई प्रतिबंध
नहीं है।
2.इन वनों का सर्वाधिक विस्तार - बीकानेर
(b) वनों का भौगोलिक वर्गीकरण:-
तापमान व वर्षा के आधार पर वनों का भौगोलिक वर्गीकरण किया जाता
है।
भौगोलिक वर्गीकरण
के आधार पर वनों को पाँच भागों में बाँटा गया है-
- उष्णकटिबंधीय कंटीले वन
- उष्णकटिबंधीय धोकड़ा वन
- उष्णकटिबंधीय शुष्क मानसूनी वन
- उष्णकटिबंधीय सागवान वन
- उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन
(1) उष्णकटिबंधीय कंटीले वन:-
- वर्षा -0-30 सेमी.
- वन क्षेत्र- 6 प्रतिशत
- विस्तार - शुष्क मरुस्थली क्षेत्र (जैसलमेर, बीकानेर, बाड़ेमर एवं जोधपुर )
- प्रमुख वन- नागफनी, एलोवेरा, कंटीली झाडी
- महत्व - मरुस्थलीकरण को रोकने में।
(2) उष्णकटिबंधीय धोकड़ा वन:-
- वर्षा- 30-60 सेमी.
- वन क्षेत्र- 58
- विस्तार - अर्द्धशुष्क मरूस्थली क्षेत्र (लूनी बेसिन, नागौर, शेखावाटी, करौली एवं सवाईमाधोपुर)
- प्रमुख वन- खेजडी, रोहिड़ा, बबूल, बैर एवं कैर
- महत्व - ईधन की लकड़ी प्राप्त की जाती है।
(3) उष्णकटिबंधीय शुष्क मानसूनी वन:-
- वर्षा- 50. 80 सेमी.
- वन क्षेत्र- 28 प्रतिशत
- विस्तार - अलवर, भरतपुर, करौली, धौलपुर, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा एवं राजसमंद
- प्रमुख वन- साल, सागवान, शीशम आम एवं चन्दन ।
- महत्व - इन वनों का आर्थिक महत्व सर्वाधिक होता है। उदाहरण- ईमारती लकड़ी के रूप में।
(4) उष्णकटिबंधीय सागवान वन:-
- वर्षा- 75 - 110 सेमी.
- वन क्षेत्र- 7 प्रतिशत
- विस्तार- बासवाड़ा, डूंगरपुर,
प्रतापगढ़, कोटा एवं झालावाड़ ।
- प्रमुख वन- गुलर, महुआ एवं तेन्दु ।
- महत्व- औद्योगिक क्षेत्र में उपयोगी।
(5) उष्णकटिबंधीय सदाबहान वन:-
- वर्षा- 150 सेमी.
- वन क्षेत्र- 1 प्रतिशत
- विस्तार- माऊंट आबू
- प्रमुख वन - डिकल्पटेरा आबू ऐसिस (अम्बरतरी) जामुन एवं बांस ।
- महत्व - इन वनों में अधिक जैव विविधता पाई जाती है।
(4) प्रमुख वन सम्पदा एवं घास
1. खेजड़ी –
- वैज्ञानिक नाम - प्रोसोपिस सिनेरेरिया (सर्वाधिक पश्चिमी राजस्थान)
- अन्य उपनाम- राज्य वृक्ष (1983) / राज्य का गौरव / शमी वृक्ष / राज्य का कल्पवृक्ष/ जांटी
(स्थानीय भाषा में)
नोट:- विजयादशमी / दशहरा के अवसर पर खेजड़ी की पूजा की जाती है।
2. रोहिड़ा –
- वैज्ञानिक नाम- टीकोमेला अंडूलेटा (सर्वाधिक पश्चिमी राजस्थान)
- अन्य उपनाम :- राज्य पुष्प (1983) / मरुस्थल का सागवान
3. महुआ-
- वैज्ञानिक नाम- मधुका लॉगिफोलिया (सर्वाधिक डूंगरपुर)
- इसे "आदिवासियों का कल्पवृक्ष" कहा जाता है।
- महुआ फूल का उपयोग शराब बनाने में किया जाता है।
4. पलाश / ढाक / खाखरा
- वैज्ञानिक नाम - ब्युटिया मोनोस्पर्मा (सर्वाधिक राजसमंद)
- इसे 'जंगल की ज्वाला कहा जाता है।
5. डिकल्पटेरा आबू ऐंसिस ( अम्बरतरी) -
- यह एक औषधीय पादप हैं जो विश्व में केवल माउंट आबू में पाया जाता है।
6. खैर (सर्वाधिक उदयपुर, चित्तौड़गढ़)
- उदयपुर चित्तौड़गढ़ में कथौड़ी जनजाति द्वारा इस वृक्ष की छाल से कत्था तैयार किया जाता हैं।
7. शहतूत (सर्वाधिक उदयपुर) -
- इस वृक्ष पर रेशमकीट से रेशम उत्पादित किया जाता है। इस पालन को सेरीकल्चर कहा जाता है।
8. तेंदू (सर्वाधिक-
प्रतापगढ़ चित्तौड़गढ़ एवं
हाडौती)
- इसकी पत्तियों का उपयोग बीड़ी बनाने में किया जाता है।
- इसकी पत्तियों को टिमरू' कहा जाता है।
- 1974 में टिमरू के पेड़ का राष्ट्रीयकरण हुआ।
9. जामुन (सर्वाधिक- माउंट आबू सिरोही एवं अजमेर )
- मधुमेह के उपचार में उपयोगी।
10. सागवान (सर्वाधिक बांसवाड़ा)
- इसकी लकड़ी का उपयोग मुख्यतः फर्नीचर बनाने में किया जाता है।
11. प्रमुख घास
(i) सेवण / लीलोण वैज्ञानिक नाम- लसीयूरस सिंडिकस (सर्वाधिक जैसलमेर)
- पशुओं के चारे के रूप में उपयोगी
- इसे गोडावण की शरणस्थली भी कहा जाता है।
(ii) धामण वैज्ञानिक नाम - सेन्क्रस 1.सेटीजेरस (सर्वाधिक
जैसलमेर) दुधारू पशुओं के लिए उपयोगी।
(iii) बांस वैज्ञानिक नाम - बम्बुसा वल्गरिस, (सर्वाधिक बाँसवाड़ा)
- यह सर्वाधिक लम्बी घास होती है जिसे आदिवासियो का हरा सोना भी कहा जाता है।
(iv) खस घास (सर्वाधिक- भरतपुर, सवाईमाधोपुर, टोंक एवं अजमेर) यह सुगंधित
घास है जो शरबत बनाने एवं इत्र बनाने में उपयोगी होती है।
(v) बुर घास (सर्वाधिक- बीकानेर)
- यह सुगंधित घास है।
(vi) मोचिया घास (सर्वाधिक-
चूरू)
- यह तालछापर अभ्यारण्य में पाई जाती है।
(5) वृक्षारोपण कार्यक्रम
- मरुस्थल वृक्षारोपण कार्यक्रम-
1.शुरुआत - 1977-78
नोट:- मरुस्थल विकास कार्यक्रम (DDP) प्रारंभ - 1977-78 जिला -16 वित्तीय सहयोग केंद्र राज्य
(75:25) |
2.जिले- 10
3.वित्तीय भागीदारी- केंद्र (75 प्रतिशत) राज्य (25 प्रतिशत)
विविधता को बढ़ाना।
2. अरावली वृक्षारोपण योजना -
- शुरूआत- 1992
- सहयोग- जापान
3. राज्य वानिकी क्रियान्वन योजना-
- शुरुआत -1996 से 2016 (20 वर्षीय कार्यक्रम)
4. राजस्थान वानिकी
और जैव विविधता परियोजना -
- सहायता- जापान इंटरनेशनल को-ऑपरेशन एजेंसी (JICA) |
उद्देश्य:-
- वनों एवं जैव-विविधता को बढ़ाना
- मिट्टी एवं जल संरक्षण।
- गरीबी उन्मूलन एवं आजीविका कार्यक्रम
चरण
फेज प्रथम (2003-2010) |
फेज द्वितीय
(2011-2019) |
18 जिले |
15 जिले (10 मरूस्थलीय
5 गैर मरुस्थलीय) |
नोट:- फेज द्वितीय
में गैर मरूस्थलीय जिलों में जयपुर, सिरोही, बाँसवाड़ा, डूंगरपुर एवं भीलवाडा को शामिल
किया गया है।
5. हरित राजस्थान
कार्यक्रम (2009- 2014 तक) -
यह वृक्षारोपण की पंचवर्षीय योजना है।
6. वन धन योजना (
12 अगस्त, 2015) -
उद्देश्य - वन क्षेत्रों के निकट रहने वाले लोगो के विकास एवं
उनकी वनों पर निर्भरता कम करने व रोजगार उपलब्ध करवाने की योजना ।
(6) वन संरक्षण पुरस्कार:-
1. अमृता देवी बिश्नोई
पुरस्कार-
प्रारंभ -1994
उदेश्य:-
(1) वृक्षारोपण
(2) वन संरक्षण
(3) वन्य जीवन सरंक्षण
यह पुरस्कार तीन स्तर
पर दिया जाता है
व्यक्तिगत वन संरक्षण राशि 50 हजार |
व्यक्तिगत वन्य जीव संरक्षण
राशि- 50 हजार |
संस्थागत वन सुरक्षा एवं प्रबंधन
राशि 1 लाख |
ओम सिंह राजावात (2018) |
सतनाम सिंह राजावात
(2018) |
1. वंडर सीमेंट कम्पनी आर. के. नगर (चित्तौड़गढ़) 2. वन सुरक्षा एवं प्रबंधन
समिति उदयपुर 3. मानव सेवा उत्थान -हनुमानगढ़ |
2. इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार :-
- यह पुरस्कार भारत सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा उन व्यक्तियों और संस्थानों को दिया जाता है जिन्होंने वनीकरण और बंजर भूमि विकास के क्षेत्र में अग्रणी और अनुकरणीय कार्य किया है।
2.राशि -
2,50,000रू.
3. राजीव गांधी पर्यावरण
संरक्षण पुरस्कार -
1.शुरूआत 2012 (5 जून)
4. कैलाश सांखला वन्यजीव
संरक्षण पुरस्कार -
1.राशि 50 हजार रूपये (वन्य जीवों की सुरक्षा हेतु)
5.वनपालक पुरस्कार -
1.यह पुरस्कार सरकारी विभाग में कार्य करने वाले वन रक्षक और वन विभाग के कर्मचारियों
को दिया जाता है।
(7) वनस्पति एवं वन्य
जीवों के संरक्षण संबंधी कानून / अधिनियम
1.वन्य जीव संरक्षण अधिनियम |
1972 |
2. बाघ संरक्षण अधिनियम |
1973 |
3.मगरमच्छ संरक्षण अधिनियम |
1975 |
4. वन संरक्षण अधिनियम |
1980 (संशोधित 1988) |
5. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम |
1986 |
6. हाथी संरक्षण अधिनियम |
1992 |
7. जैव विविधता संरक्षण अधिनियम |
2002 |
8. डॉल्फिन संरक्षण अधिनियम |
2009 |
9. ऊँट संरक्षण अधिनियम |
2014 |
10.गोडावन संरक्षण अधिनियम |
2014 |
नोट:- राजस्थान राज्य जैव विविधता बोर्ड का गठन 14 सितम्बर,
2010 जयपुर में किया गया।
प्रमुख वन एवं पर्यावरण
दिवस:-
14 जनवरी 31 जनवरी |
जीव जंतु पखवाड़ा |
2 फरवरी |
रामसर / विश्व आर्द्रभूमि दिवस |
21 मार्च |
विश्व वानिकी दिवस |
22 मार्च |
जल दिवस |
22 अप्रैल |
पृथ्वी दिवस |
22 मई |
जैव विविधता दिवस |
5 जून |
विश्व पर्यावरण दिवस |
1 जुलाई से 7 जुलाई |
वन महोत्सव एवं वन सप्ताह |
16 सितम्बर |
ओजोन दिवस |
1 अक्टूबर से 7 अक्टूबर |
वन्य जीव सप्ताह |
थीम 2021
पृथ्वी दिवस |
Restore Our Earth |
जल दिवस |
Valuing Water |
जैव विविधता दिवस |
We are part of the solution |
विश्व पर्यावरण दिवस |
Eco-System Restoration |
अन्य महत्वपूर्ण बिन्दू
(a) वनों के संबंधित संस्थानः-
(1) काजरी (CAZRI)- Central Arid Zone Research Institute
स्थापना:- 1959 जोधपुर
( 2 ) आफरी ( AFRI)- Arid Forest Research Institute
स्थापनाः- 1988 जोधपुर
(b) राजस्थान के प्रमुख
बायो लॉजिकल पार्क-
1. सज्जनगढ |
उदयपुर |
2. माचिया सफारी |
जोधपुर |
3. नाहरगढ़ |
जयपुर |
4. अहेड़ा |
कोटा (नांता) निर्माणाधीन |
5. मरुधरा |
बीकानेर (बीछवाल) निर्माणाधीन |
(c) राजस्थान के अन्य पार्क -
1. प्रकृति पार्क |
चूरू, लक्ष्मणगढ़ (सीकर) |
2. कैक्टस गार्डन |
कुलधारा (जैसलमेर) |
3. बटरफलाई पार्क |
जयपुर |
4. बोगनवेलिया थीम पार्क |
जयपुर, उदयपुर |
5. जैव विविधता पार्क |
गमधर (उदयपुर) |
नोट:- Monkey Valley of Rajasthan- गलता जी (जयपुर)
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